Monday, February 20, 2017

Tuesday, July 19, 2016

कभी तनहाइयों में यूँ हमारी याद आएगी


स्वप्निल संसार। हिंदी सिनेमा में  शमशाद  बेगम, सुधा  मल्होत्रा, कमल  बारोट, उषा  मंगेशकर, रुमागुहा ठाकुरता,जगजीत कौर,सुमन कल्याणपुर,शारदा ने मंगेशकर बैरियर पार करने की कोशिश की पर इन सब को कामयाबी नहीं मिली,ऐसा ही एक नाम और है मुबारक बेगम का,मुबारक बेगम भी इस बैरियर को पार नहीं कर सकी,मुबारक बेगम के बारे में बहुत ज्यादा कुछ पता नहीं है मसलन वो कब चुरू से बम्बई आई पहली बार किस फिल्म के लिए गाना गया ? उनकी पैदाइश 1940 की बताई जाती है फिल्मों में आने से पहले वो औल इंडिया रेडियो पर गाती थी और 1953 में फिल्म दायरा के लिए उन्होंने गीत गाये थी, ज़ाहिर है की 13 साल की उम्र में तो यह सब नहीं किया होगा,मुबारक बेगंम की पैदाइश सुजान गढ़(चुरू) राजस्थान में हुई थी ऐसा कहा जाता है पर खुद उन्होंने एक बार बताया था की अहमदाबाद में उनके पिता जी फल का कारोबार करते थे।
 मुबारक बेगम ने औल इंडिया रेडियो से अपने कैरियर की शुरुआत की थी सुगम संगीत से और 1950 के दशक में हिंदी फिल्मों में गाने का मौक़ा मिल गया,कभी  तनहाइयों  में  यूँ " केदार शर्मा की फिल्म :हमारी  याद आएगी (1961) गीत लिखा था केदार शर्मा ने,कम्पोजर थे  स्नेहल  भाटकर यह गीत हिंदी सिनेमा गीतों के इतिहास में  classic के तौर पर हमेशा के लिए दर्ज़ हो चुका है,मुबारक बेगम ने अपने  कैरियर की  शुरुआत शायद कमाल  अमरोही की फिल्म "दायरा"(1953) से  थी  "देवता तुम हो मेरा सहारा" इस गाने में उनके साथ थी लता मंगेशकर.1955 में बिमल राय की देवदास में उनको एसडी बर्मन "वो ना आएंगे  पलट कर" गाने का मौक़ा मिला, बिमल रॉय की मधुमति 1958 में हम हाल-ऐ-दिल सुनायेगे,सलिल चौधरी कम्पोजर थे "मुझको अपने लगा लो ऐ मेरे हमराही" फिल्म हमराही (1963) में मो.रफी के साथ  शंकर - जयकिशन कम्पोजर थे लगभग 53 साल के बाद भी यह गाना आज भी अच्छा लगता है.मुबारक बेगम ने  शंकर- जयकिशन, एसडी बर्मन, सलिल चौधरी, कल्याणजी - आनंदजी, खय्याम, नौशाद, मदन मोहन और नाशाद की धुनो पर गाने गाये, बॉलीवुड की  क्रूर आंतरिक राजनीति और "मंगेशकर बैरियर की वज़ह से वो मुकाम नहीं हासिल कर सकी जिसकी वो हकदार थी,1970 के आस पास को हार गयी,अब से कई साल पहले  जावेद अख्तर और  सुनील दत्त, (अब मरहूम ) ने मुबारक बेगम की सुधि ली और  मुंबई के जोगेश्वरी  में एक सरकारी मकान उन्हें एलाट करवा के दिया था जहाँ  वो  अपने बेटे और  बीमार बेटी शफक बानो के साथ रह रही थी जो  अपाहिज है और पार्किंसंस रोग से ग्रस्त है. उनका बेटा टैक्सी चलाता है,पिछले कुछ सालों से मुबारक बेगम खुद भी बीमार रहने लगी थीं ,महाराष्ट्र सरकार ने अक्तूबर 2011 में  बीमार बुजुर्ग मुबारक बेगम के इलाज के लिए एक लाख रुपये की वित्तीय सहायता मंजूर थी  "मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने  मुख्यमंत्री राहत कोष से एक लाख की वित्तीय सहायता दी थी ,मुबारक बेगम को सरकारी मकान के अलावा  1400/-रूपये की पेंशन भी जावेद अख्तर और सुनील दत्त, (अब मरहूम ) ने बंधवा दी थी, दत्त साहब के इंतकाल के बाद सुना है  की अक्सर जावेद अख्तर साहब मुबारक बेगम की खोज खबर लेते रहते है कुछ एन.आर.आई और लोग भी उनकी मद्दद कर देते थे  उनके बैंक  अकाउंट में रूपये जमा करवा देते थे।
 2004 में और 2006 में मुबारक बेगम के कई गानों के रिमिक्स एल्बम रिलीज़ हुए जिन्हें संगीत प्रेमियों ने हाथों हाथ लिया था,कई म्यूजिक कम्पनियों ने मुबारक बेगम के गाने रिमिक्स एल्बम की शक्ल में बाज़ार में में उत्तार दिए,मुबारक बेगम अपनी गजलों के लिए हमेशा याद रहेंगी, 1980 में अलबम "रामू तो दीवाना है" के लिए सवारिया तेरी याद में उन्होंने आखिरी बार गाया,कई सालों से वो मुफलिसी और गुमनामी की ज़िंदगी जी रही थी।  
मुबारक बेगम ने 18   जुलाई 2016 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। फ़िल्मी दुनिया से सिर्फ रज़ा मुराद ही उनकी मिट्टी में शामिल हुए। हाल के सालों में सलमान खान भी उनकी आर्थिक मदद किया करते थे।
मुबारक बेगम के कुछ मशहूर गाने ,"शमा  गुल  करके  न  जा "अरब का सितारा (1960),"कभी  तनहाइयों  में  हमारी  याद  आएगी" (हमारी  याद  आयेगी 1961 ),"आयजी  आयजी  याद  रखना  सनम" (डाकू  मंसूर 1961),"नींद  उड़  जाए  तेरी  चैन  से  सोने  वाले" (यह  दिल  किसको  दूं 1963)
"मुझ  को  अपने  गले  लगा लो " (हमराही 1963 ) हमें  दम दएके" ( यह दिल किसको दूं 1963) ,"ए  दिल  बता ' (खूनी  खज़ाना 1964 )
"कुछ  अजनबी  से  आप  हैं " शगुन 1964 "बे -मुरव्वत  बे -वफ़ा  बेगाना -ऐ  दिल  आप  हैं " (सुशीला  1966) सावरिया  तेरी  याद  में "रामू तो दीवाना है (1980)

Friday, December 7, 2012

"गर्म धर्म"

धर्मेन्द्र सिंह  दयोल  8 दिसंबर,1935 हिन्दी फ़िल्मों के "गर्म धर्म" लुधियाना के गाव साहनेवाल से वो लुधियाना रेलवे स्टेशन आते जहाँ वो रेलवे में क्लर्क थे, लगभग सवा सौ रुपये तनख्वाह थी,व्हीलर शाप से  फिल्म फेयर मैगज़ीन(english) खरीदते और हमेशा यही सोचते थे की एक दिन उनकी भी तस्वीर यहाँ  होगी उन्ही दिनों  Filmfare ने  new talent award का एलान किया धर्मेन्द्र ने वो  इश्तेहार देखा और भर कर कुछ फोटो के  साथ  भेज दिया कुछ महीनों के बाद Filmfare  new talent award का नतीजा आया इसके विजेता थे, धर्मेन्द्र ने  मेट्रिक तक ही तालीम पूरी की। स्कूल के वक्त से ही फिल्मों का इतना शौक था कि दिल्लगी (1949) फिल्म को 40 से भी ज्यादा बार देखा था उन्होंने। अक्सर क्लास में पहुँचने के बजाय सिनेमा हॉल में पहुँच जाया करते थे। । 19 साल की उम्र में ही शादी भी हो चुकी थी उनकी प्रकाश कौर के साथ। फिल्म फेयर  talent award विनर धर्मेन्द्र को कई नामी गिरामी PRODUSERS ने  नापसंद कर दिया कुछ ने उन्हें फ़ुटबाल खिलाडी बनने की सलाह भी दी, धर्मेन्द्र की मुलाकात हुई अर्जुन हिंगोरानी से  हिंगोरानी ने अपनी फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे के लिये उन्हें हीरो के रोल के लिए साइन कर लिया 51 रुपये साइनिंग एमाउंट देकर। पहली फिल्म में  हेरोइन कुमकुम थीं।  दिल भी तेरा हम भी तेरे 1960,से धर्मेन्द्र और अर्जुन हिंगोरानी का साथ शुरू हुआ जो  कब क्यों और  कहाँ 1970 कहानी किस्मत की 1973,खेल खिलाडी का 1977,कातिलों के कातिल 1981, करिश्मा कुदरत का 1985,सल्तनत 1986,कौन करे  क़ुरबानी 1991,कैसे कहूँ ... प्यार के हैं 2003 तक रहा, धर्मेन्द्र  की दूसरी फिल्म थी शोला और शबनम 1961 इस फिल्म की हेरोइन थी तरला इस फिल्म के गाने थे " जीत ही लेंगे बाज़ी,जाने क्या ढूँढती रहती,फीट लिखे कैफ़ी आजमी और संगीतकार थे खय्याम,दोनों ही फ़िल्में चली नहीं संघर्ष के दौर  में जुहू में एक छोटे से कमरे में रहते थे। अनपढ़ (1962), बंदिनी (1963) तथा सूरत और सीरत (1963) से उनकी पहचान बनी,आई मिलन की बेला 1964 में वो विलंन बने हीरो थे  राजेन्द्र कुमार हेरोइन थी सायरा बानू  निर्माता जे ओम प्रकाश ने अपनी अगली फिल्म आये दिन बहार के 1966 और  आया सावन झूम के 1969 आस पास 1981 में हीरो लिया धर्मेन्द्र पर उनकी हेरोइन हमेशा मेहरवान रही 1966 ओ.पी. रल्हन की फिल्म फूल और पत्थर जो साल की सबसे बड़ी  हिट फिल्म साबित  हुई, फूल और पत्थर से धर्मेन्द्र  ने पीछे मुड़कर नहीं देखा । 200 से भी अधिक फिल्मों में काम किया है धर्मेंद्र ने, कुछ यादगार  फिल्में हैं अनुपमा, मँझली दीदी, सत्यकाम, शोले, चुपके चुपके। धर्मेन्द्र अपने स्टंट सीन  बिना डुप्लीकेट की  मदद के खुद ही करते थे। चिनप्पा देवर की फिल्म मां में चीते के साथ फाइट की थी, अपने कैरियर के शुरू में, वह आम तौर पर रोमांटिक हीरो के रूप में नज़र आते थे बाद में एक्शन हीरो के रूपमें, उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत में कई प्रमुख अभिनेत्रियों के साथ अभिनय किया. सूरत और सीरत 1962, बंदिनी 1963, अनपढ़ में माला सिन्हा 1962 पूजा के फूल 1964 शादी में सायरा बानो 1962 आई  मिलन की बेला 1964 पद्मिनी तनुजा  नूतन और मीना  कुमारी  के साथ मैं भी लड़की हूं 1964, काजल,पूर्णिमा 1965 फूल और पत्थर 1966 के अलावा शर्मिला टैगोर, मुमताज, आशा पारेख, लीना चंदावरकर रेखा, जीनत अमान हेमा मालिनी के साथ जोड़ी बनी हेमा मालिनी, के साथ तुम हंसी में राजा जानी, सीता और गीता, शराफत, जुगनू, दोस्त, चरस, मां  चाचा भतीजा आज़ाद प्रतिज्ञा शोले.प्रतिज्ञा चरस,आज़ाद,आसपास.  धर्मेंद्र की सबसे यादगार फिल्म थी  हृषिकेश मुखर्जी के साथ सत्यकाम,बिमल रॉय मोहन कुमार, यश चोपड़ा  राज खोसला, रमेश सिप्पी, अर्जुन हिंगोरानी अनिल शर्मा और राजकुमार संतोषी  रघुनाथ झालानी के साथ जुड़े,के साथ जुड़े,हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने कई पंजाबी फिल्मों में एक्टिंग की,कई लोगों की मदद फ़िल्मी दुनिया में उन्होंने की,पर उन पर यह दाग भी है उनकी मदद करने वाली मीना कुमारी की मदद उन्होंने नहीं की  247 से भी ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग करने वाले "ही मेंन" धर्मेन्द्र को कभी उनकी एक्टिंग के लिए फिल्म  फेयर अवार्ड नहीं मिला 1997 में जब उन्हें  Filmfare Lifetime Achievement Award  मिला तो वो बहुत संजीदा हो गये थे फिल्म  फेयर से अपने रिश्ते को उन्होंने जाहिर कर दिया था, दूसरा अवार्ड IIFA   Lifetime Achievement Award  2007 .में उन्हें मिला.Dharmendra has also been active in politics. He was elected as a Member of the Parliament in the 2004 general elections, from Bikaner in Rajasthan, on a Bharatiya Janata Party ticket. During his election campaign, he made an ironic remark that he should be elected Dictator perpetuo to teach "basic etiquette that democracy requires" for which he was severely criticized.Dharmendra rarely attended Parliament when the house was in session, preferring to spend the time shooting for movies or doing farm-work at his farm house. From his first marriage, he has two sons, Sunny Deol and Bobby Deol both successful actors, and two daughters, Vijeeta and Ajeeta. From his second marriage to Hema Malini, Dharmendra has two daughters Esha Deol, who is an actress, and Ahana Deol.  

Tuesday, November 20, 2012

हैलन बेमिसाल अदाकारा

हैलन जिरग रिचर्डसन का जन्म 21 नबंवर 1939,बर्मा ( अब म्यांमार) में हुआ था,द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापान ने बर्मा पर कब्ज़ा कर लिया था इसी दौरान हेलन और उनका परिवार बम्बई आ गया। हैलन के वालिद पिता एंग्लो-इंडियन थे, वालिदा बर्मीज थी, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इनके वालिद की मौत हो गई और हैलन अपनी माँ भाई रोजर और बहन जेनिफर के साथ बम्बई आ गयी थी 1943 में, यहाँ इस परिवार की मदद उस जमाने की मशहूर डांसर कुक्कू ने की हैलन की माँ ट्रेंड नर्स थी,लिहाजा उनकी ज़ल्दी नौकरी मिल गयी,लेकिन उनकी तनखाहचार लोगों के लिए पूरी नही पड़ रही थी,हैलन ने अपनी पढाई छोड़ दी और अपने परिवार का हाथ मज़बूत करने के लिए निकल आई घर से बाहर कुक्कू की मदद से फिल्मों में उन्हें कोरस डांसर के रूप में काम मिला,वो 1951 में "शबिस्तां" और "आवारा" में नजर आई थीं। हैलन छोटे डांस में नजर आने लगी थी उनकी भाई बहन की पढाई जारी रही,हैलन की ज़िंदगी अब बदलने जा रही थी और साल था 1958 इसी साल रिलीज़ हुई शक्ती सामंत की 'हावडा ब्रिज' जिसके हीरो थे अशोक कुमार हेरोइन थी मधुबाला,इस फ़िल्म में उनपर फ़िल्माया यह गीत ‘मेरा नाम चिन-चिन चू’ उन दिनों दर्शकों के बीच काफ़ी मशहूर हुआ था । इस गाने को गया था गीता दत्त ने,गीता दत्त ने संगीतकार ओ.पी.नैय्यर की धुन पर जम कर गाया था. हैलन ने मणिपुरी,भरतनाट्यम, कथक आदि शास्त्रीय नृत्यों में भी शिक्षा हासिल की. साठ के दशक में हैलन ने बतौर अभिनेत्री अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करने लगी। इस दौरान उन्हें अभिनेता संजीव कुमार के साथ फ़िल्म ‘निशान’ (1965 ) में काम करने का मौक़ा मिला, लेकिन दुर्भाग्य से यह फ़िल्म सिनेमा घर में चल नहीं पाई। साठ के दशक में गीता दत्त और सत्तर के दशक मे आशा भोंसले को हैलन की आवाज़ मानी जाता था । आशा भोंसले ने हेलन के लिये तीसरी मंजिल में ‘ओ हसीना जुल्फों वाली’ फ़िल्म कारवां में ‘पिया तू अब तो आजा’ मेरे जीवन साथी में ‘आओ ना गले लगा लो ना’ और डान में ‘ये मेरा दिल यार का दीवाना’ गीत गाये। हेलन ने अपने पाँच दशक लंबे सिने करियर में लगभग 500 फ़िल्मों में अभिनय किया। इतने सालों के बाद भी उनके नृत्य का अंदाज़ भुलाए नहीं भूलता है। वर्ष 1975 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘शोले’ में आर. डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में हैलन के ऊपर फ़िल्माया गीत ‘महबूबा महबूबा’ आज भी सिनेप्रेमियों को झूमने पर मजबूर कर देता है। हालांकि सत्तर के दशक में नायिकाओं द्वारा ही खलनायिका का किरदार निभाने और डांस करने के कारण हेलन को फ़िल्मों में काम मिलना काफ़ी हद तक कम हो गया था । वर्ष 1979 में महेश भट्ट के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘लहू के दो रंग’ में अपने दमदार अभिनय के लिए हेलन को सवश्रेष्ठ सहनायिका के फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘हेलन की नृत्य शैली’ से प्रभावित बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री साधना ने एक बार कहा था, "हेलन जैसी डांसर न तो पहले पैदा हुई है और ना ही बाद में पैदा होगी।"शक्ती सामंत की "पगला कही का "(1970 ) में बेहद शानदार रोल मिला था. गुमनाम में उनके रोल के लिए उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड के लिए नामकित भी किया गया था,हिन्दी फिल्मों में डांस के अलावा उन्होंने कई फिल्मों में शानदार रोल किये थे,क्लाइमेक्स में विलन की गोली जब हीरो पर चलती थी तब हीरो के सामने आकर वो गोली का निशाना बन जाती थी,हीरो की बाँहों में दम तोड़ते हुए इजहारे मोहब्बत करना जैसे रोल हैलन ने खूब किये,कई फिल्मों की रिलीज़ अटक जाती थी,वितरक निर्माता से पूछते थे इसमें हैलन का डांस है ? कई बार फिल्म रिलीज़ करवाने के लिए निर्माता हैलन का डांस डालते थे,1957 से 1973 तक हेलेन फिल्म निदेशक पी.एन.अरोड़ा के साथ लिव इन रिलेशन में रही ,यह रिश्ता उनके 34 वें जन्मदिन पर 21 नवंबर, 1973 को टूट गया,पी.एन. अरोड़ा 16 साल की हेलेन की आमदनी को लुट लिया था जब उन्होंने पी.एन.अरोड़ा का साथ छूटा तब हेलेन के हाथ खाली थे ,निर्माता पी.एल.अरोरा के साथ लगभग 17 सालों का रिश्ता जब उनसे टूटा तो हैलन फुटपाथ पर थी उनकी हाथ में कुछ नहीं था,उनकी सालों की कमाई पर डाका पड़ चुका था, हैलन ने फिर नहीं हारी हिम्मत और फिर से जल्दी ही खुद को फिर साबित कर लिया. लेखक सलीम खान ने हैलन की मदद की और कई फिल्मों में हैलन को दमदार रोल मिलने लगे शोले में ‘महबूबा महबूबा’ गीत उनके हिस्से में आया, ईमान धर्म (1977 ) में वो अमिताभ बच्चन के साथ नायिका बन कर आई थी,1979 में लहू के दो रंग में उनके हीरो थे विनोद खन्ना जो पति और बेटे की भूमिका में थे उनके साथ, डान, दोस्ताना में भी उनके रोल सराहे गये गये थे.1981 में उनोने सलीम खान से शादी कर ली और 1983 में फिल्मों में काम करना छोड़ दिया,1981 में,उन्होंने एक लड़की, अर्पिता को अपनाया कई साल के बाद वो ख़ामोशी The Musical (1996) में दिखाई थी दादी के रोल में हम दिल दे चुके सनम .(1999) में वो अपने सौतेले बेटे सलमान खान की फ़िल्मी माँ बन कर आई और मोहब्बतें 2000 में आखिरी बार बड़े परदे पर नजर आई थी.साल 2009 में वो छोटे परदे पर Indian Dancing Queen (Dance Contest) के सेमी फ़ाइनल और फ़ाइनल के ज़ज़ के रूप में नज़र आई थी Helen appeared as a Judge in the semi finals and finals of the 2009. हेलन पर फ़िल्माये लोकप्रिय गाने "मेरा नाम चिन चिन चू, रात चांदनी मैं और तू हल्लो मिस्टर हाऊ डू यू डू. . . "- हावडा ब्रिज (1958) 'पिया तू अब तो आजा...'- कारवां (1971) ‘ये मेरा दिल यार का दीवाना’ गीत गाये'- डॉन(1978) "मूंगडा मूंगडा मैं गुड की ढली, मंगता है तो आजा रसिया नहीं तो मैं ये चली"- इंकार (1978) "महबूबा महबूबा"-शोले (1975) उल्लेखनीय फ़िल्में हैलन की कुछ मशहूर फ़िल्में थी आवारा, मिस कोको कोला, यहूदी, हम हिंदुस्तानी, दिल अपना और प्रीत पराई, गंगा जमुना, वो कौन थी, गुमनाम, ख़ानदान, जाल, ज्वैलथीफ, प्रिस, इंतक़ाम, द ट्रेन, हलचल, हंगामा, उपासना, अपराध, अनामिका, जख्मी, बैराग, खून पसीना, अमर अकबर ऐंथोनी., द ग्रेट गैम्बलर, राम बलराम, शान, कुर्बानी, अकेला, खामोशी, हम दिल दे चुके सनम, मोहब्बते, मैरी गोल्ड. पुरस्कार "लहू के दो रंग" (1979)- सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार। 2006 में जैरी पिंटो ने हेलन के ऊपर एक किताब लिखी थी, जिसका शीर्षक था "द लाइफ एण्ड टाइम्स ऑफ इन एच-बोम्बे", जिसने 2007 का सिनेमा की बेहतरीन पुस्तक का राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड जीता। 2009 में हेलन को पद्मश्री सम्‍मान से भी नवाजा गया है।

Tuesday, October 23, 2012

ऐतहासिक धरोहर बख्शी का तालाब


ऐतहासिक धरोहर बख्शी का तालाब
तालाब  का निर्माण 1226 हिजरी यानि सन 1805 में तत्कालीन अवध के राजा  नवाब  त्रिपुर  चन्द्र बख्शी पुत्र मजलिस राम तालाब  ने शुरू कराया था बख्शी जी ने भव्य तालाब के साथ साथ श्री बांके बिहारी,मंदिर एवम शिव मंदिर का भी निर्माण कराया था उस समय की नायब वास्तुकला की झलक है, तालाब,मंदिर व बारादरियों की तामीर 1236 हिजरी यानी सन 1815 में पूरा हुआ निर्माण पर उस वक्त तीन करोड़ 56 लाख रूपये चांदी के खर्च हुए थे इस तामीर के बाद इस गुमनाम जगह को नाम मिला ‘बख्शी का तालाब’ जो आज  भी कायम है कहा जाता है की बख्शी जी ने अवध के चौथे बादशाह नवाब अमजद अली शाह  17 मई  1842  13 फरवरी 1847 को बताये बिना तालाब की तामीर कराई थी लिहाज़ा वो नाराज़ हो गये थे यह नाराज़गी   राजा त्रिपुर  चन्द्र बख्शी को मंहगी पड़ी बादशाह नवाब अमज़द अली शाह  की फौज ने राजा त्रिपुर  चन्द्र बख्शी पर हमला कर दिया तब ब्राहम्ण सेना ने पंडित जगन्नाथ शुक्ला  की कयादत में शाही फौज का सामना किया था राजा त्रिपुर  चन्द्र बख्शी भूमिगत हो गये और वो अपने गुरु महाराज के पास वृन्दावन पहुँच गये और अपने गुरु बंशी लाल महाराज को यह तालाब दान कर दिया श्री बाके बिहारी मंदिर का जी उन्ही के वंशज सरन बिहारी गोस्वामी ने करवाया जबकी शिव मंदिर का काया कल्प सन 1998-1999 में गाय वाले बाबा ने कराया 1997 में सूबे के तब के मुख्यमंत्री कन्याण सिंह ने तालाब के लिए 20 लाख रूपये दिए साल 2001 में का काम शुरू हुआ वक्त बीत गया कई सरकारें बदली विधायक भी बदले पर थोडा बहुत बदलाव होता रहा,आज भी बख्शी का तालाब  को इंतज़ार है पूरी तरह से बदलाव का,इस खूबसूरत प्राचीन विरासत संरचना तालाब के साथ चार पक्षों और आठ ऐतिहासिक   घाटों पर आधारित है, इसके अलावा, आप दो कृष्ण और शिव मंदिर तालाब परिसर पर स्थित देख सकते हैं,  यहाँ बख्शी का तालाब वायुसेना स्टेशन स्थित है- बख्शी का तालाब  से कुछ किलोमीटर की दूरी पर  चंद्रिका देवी का मंदिर ‘कठवारा’ में है  ललिता  देवी मंदिर ‘सोनवा’ ,ब्रहम बड़ा मंदिर ‘नागुवामा’ और  ठाकुर  द्वारा बख्शी का तालाब मंे मौजूद हैं आज ‘बख्शी का तालाब’ विधान सभा छेत्र है 2007 के  विधान सभा  चुनाव तक यह इलाका महोना विधान सभा इलाके के नाम से जाना जाता था 2012 से बख्शी का तालाब  के नाम से विधान सभा छेत्र है,बख्शी का तालाब  सूबे की सबसे छोटी तहसील और सबसे बड़े ब्लाक के लिए भी जाना जाता हैं,तीन साल पहले यहाँ रामलीला होती थी जिसमें मुस्लिम किरदार ज्यादा हुआ करते थे धन की कमी और स्थानीय राजनीति के चलते यह रामलीला बंद हो गयी,‘बख्शी का तालाब’ इस धरोहर की रक्षा कौन करेगा ?
(c)संजोग वाल्टर

Saturday, October 20, 2012

एक जन्म दिन ऐसा भी

एक जन्म दिन ऐसा भी
कमल सडाना जन्म 21 अक्टूबर 1971 पिता बृज बीते दौर के नामी निर्माता निदेशक और लेखक थे,माँ सईदा खान बीते दौर की हेरोइन,कमल के बारे में बताने से पहले बृज और सईदा खान के बारे में ब्रज गुजरांवाला,पंजाब, पाकिस्तान 6 अक्टूबर
1933 मैं पैदा हुए थे जिनका असली नाम था बृज मोहन सडाना, हिंदी सिनेमा में इस परिवार ने कई कलाकार दिए हैं बृज ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत 1952 में भूले भटके से कई थी,बृज ने कई सुपर हिट और यादगार फ़िल्में दी,1959 नई राहें, 1960 तू नहीं और सही, 1963 उस्तादों के उस्ताद, 1966, अफसाना,यह रात फिर ना आयगी, 1967 नाईट इन लन्दन,1969 यकीन,,दो भाई,1971 कठपुतली, 1972 विक्टोरिया न.203,1974 पैसे की गुडिया, 1975 चोरी मेरा काम,1976 एक से बढ़कर एक, 1979 मगरूर 1980 Bombay 405 माइल्स,1981 प्रोफेसर प्यारेलाल,1983 तक़दीर,1985 ऊंचे लोग,1988 मर्दों वाली बात.सईदा खान ने 1949 में फिल्म चांदनी रात से बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत की थी ,शायद उनकी पहली फिल्म बतौर हेरोइन1960 में रिलीज़ हुई फिल्म अपना हाथ जगन्नाथ ,हीरो थे किशोर कुमार , हनीमून 1961 हम मतवाले नौजवान ,मॉडर्न गर्ल ,कांच की गुडिया ,वांटेड ,1962 मैं शादी करने चला, Flat No. 9 , 1964 चार दरवेश 1965 एक साल पहले,मैं हूँ अल्लादीन , सिंदबाद, अलीबाबा और अल्लादीन , बेखबर,1966 यह ज़िन्दगी कितनी हसींन है,1968 कन्यादान ,वासना .1970 में इनकी आखिरी फिल्म रिलीज़ हुई Murder On Highway ब्रज से शादी करने के बाद उन्होंने फिल्मों को अलविदा कह दिया.नम्रता और कमल दो बच्चे थे इस जोड़ी के .कमल की पैदाइश 21 अक्टोबर 1971 को हुई थी,कमल ने 1992 में फिल्म रिलीज़ फिल्म बेखुदी से शुरुआत की थी इस फिल्म में उनकी हेरोइन थी काजोल,1993 रंग, (दिव्या भारती)1994 बाली उम्र को सलाम 1995, रॉक डांसर, हम सब चोर हैं,1996 हम हैं प्रेमी,1997 निर्णायक 1998 मोहब्बत और जंग कमल को कामयाबी नहीं मिली उन्होंने काम करना छोड़ दिया साल 2006 में टेलीविजन धारावाहिक कसम से वापसी की,साल 2007 में कमल निर्माता बने फिल्म थी Karkash जो आज तक रिलीज़ नहीं हुई ,साल 2007 में कमल ने अपने पिता की फिल्म विक्टोरिया नंबर 203जो 1972 में रिलीज़ हुई जो सुपर हिट साबित हुई थी का रीमेक किया यह फिल्म 31 अगस्त 2007 को रिलीज़ हुई थी इस फिल्म में एओम पूरी , अनुपम खेर , जिमी शेरगिल ,Preeti Jhangiani , जावेद जाफरी , जॉनी लीवर के साथ अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली सोनिया मेहरा भी थी जो विनोद महरा (स्व.) की बेटी हैं.कमल ने इस फिल्म में विलंन का रोल किया था कमल की विक्टोरिया नंबर 203 को कामयाबी नहीं मिली थी ने लिसा जॉन से शादी की है Angath बेटे का नाम है, 21 अक्टूबर, 1990 कमल का बीसवा जन्मदिन था इस रात कमल अपने दोस्तों के साथ पार्टी में चले गये,और उस रात पता नहीं क्या हुआ बृज अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से पहली गोली सईदा खान को मार दी दूसरी गोली का निशाना बनी नम्रता , बृज सदमे में थे खूब रोये और चिल्लाए और तीसरी गोली उन्होंने खुद को मारी "The first bullet hit his mother. The second hit his sister. And before the shock of his father carrying a gun could settle in, a bullet had ripped through his own neck as well. It was half past midnight on October 21, 1990, and being his 20th birthday, Kamal Sadanah even had friends over, one among them slowly raising his wrist, now a blooming hibiscus of horror, for a bullet was ensconced in it."
पता नहीं किस जूनून ने जो हावी था बृज पर उसने एक परिवार खत्म कर दिया और उस रात कमल घर पर होते तो उनका भी अंत हो चुका होता पर मारने वाले से बड़ा बचाने वाले होता है जाको राखे सैयाँ मार सके न को