Tuesday, March 25, 2025

#लखनऊ वाले भूल गए #अल्मोड़ा वाले भूल गए एक थीं #शिवानी।

 स्मृति शेष



श्रीमती #गौरापंत, जिन्हें शिवानी के नाम से जाना जाता है, शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर, 1923 को #राजकोट,में हुआ था। उनके पिता श्री अश्विनी कुमार पांडे शिक्षक थे और उनकी माँ संस्कृत विद्वान थीं,
शिवानी लखनऊ महिला विद्यालय की पहली छात्रा थीं।
श्रीमती गौरा पंत 20वीं सदी की हिंदी कहानीकारों की प्रतीक थीं और उनकी कहानियाँ भारतीय महिलाओं पर केंद्रित थीं।
गौरा पंत ने #शांतिनिकेतन में नौ साल बिताए और 1943 में #विश्वभारतीविश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। शांतिनिकेतन में बिताए दिनों की यादें उनके संस्मरण आमदेर शांतिनिकेतन में लिखी गई हैं । #रवींद्रनाथटैगोर कई बार अल्मोड़ा में उनके पैतृक घर आए हैं।
कभी ‘स्वतन्त्र भारत’ के लिए ‘शिवानी’ ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा। उनके लखनऊ स्थित आवास 66, #गुलिस्ताँकालोनी के द्वार, लेखकों, कलाकारों, साहित्य प्रेमियों के साथ समाज के हर वर्ग जुड़े उनके पाठकों के लिए सदैव खुले रहे।
1982 में शिवानी जी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से अलंकृत किया गया। शिवानी जी का 21 मार्च, 2003 को दिल्ली में 79 वर्ष की आयु में निधन हुआ था ।
कुमायूँ के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड़े दिलचस्प अंदाज़ में किया।
कुमायूँ के लोग खासी तादाद में लखनऊ में हैं उनका अब सियासी रसूख भी है वे चाहें तो लखनऊ में शिवानी जी की याद में स्मृति चिन्ह स्थापित हो सकता है ।
अल्मोड़ा में भी।

सिगरेट वाले बाबा/ कप्तान बाबा

 लखनऊ के #मूसाबाग में लडाई 18 मार्च 1858 को शुरू हुई थी। इस लडाई मे घायल कैप्टन एफ. वेल्स की की मौत 21 मार्च 1858 को यहां हुई थी । उस समय की परंपरा अनुसार युद्ध घायल सैनिक व अधिकारी लडाई वाली जगह पर दफना दिए जाते थे ।

कैप्टन एफ वेल्स की कब्र को उनके दोस्त और कैप्टन एल बी जोंस ने बनवाया था।
पता नहीं कब कैप्टन एफ वेल्स वॉल

सिगरेट वाले बाबा/ कप्तान बाबा के रूप मे मशहूर हो गए और उनके कब्र पर सिगरेट और शराब चढ़ने लगी । फिर दावा किए जाने लगा कि यहां जो मुराद मांगी जाती है वह पूरी होती है।
#लखनऊ के अनपढ़ों ने इस कब्र को मज़ार कहना शुरू कर दिया और लखनऊ के पत्रकारों ने इस दरगाह कहना शुरू कर दिया। एक कब्र को दरगाह लिखने वाले या मजार लिखने वालों की दिमागी हालत क्या रहती होगी इसका अंदाजा लगाना कोई कठिन काम नहीं है।

#विश्वक्षयरोगदिवस



भवाली आने के बाद #कमलानेहरू की जिंदगी अगले करीब 9 महीने तक मरीज के रूप में बिस्तर तक ही सीमित रही । उनके रेडियोग्राफ से पता चला कि उनका बायें फेफेडा काफी छतिग्रस्त है और डाक्टरों ने उसके artificial pneumothorax का निर्णय लिया । उस समय भवाली के प्राइवेट डाक्टर प्रेम लाल शाह जी artificial pneumothorax के विशेषज्ञ समझे जाते थे । इलाज के लिये सेनेटोरियम से निकालकर उन्हे डा शाह के पास लाया गया और उस समय कमला जी की पूरी टीम का निवास बना घोडाखाल तिराहे के पास भीमताल को जाने वाले पैदल रास्ते पर बने कांग्रेसी नेता हीरालाल शाह का मकान ‘ चंद्र भवन ‘ । बाद में हीरालाल शाह जी के इसी मकान में कुछ दिन क्रांतिकारी यशपाल जी और फिर मधुमति फ़िल्म की शूटिंग के समय दिलीप कुमार जी भी रहे ।
डाक्टर प्रेम लाल शाह मूलत: नैनीताल के रहने वाले थे । आगरा मेडिकल कालेज , फिर कलकत्ता और उसके बाद वेल्लौर से फेफड़ों के सम्बंध में विशेषज्ञता प्राप्त कर 1926 के आसपास भवाली आ गये क्योकि उस समय भवाली में टी बी सेनोटोरियम के कारण बाह्यरोगियों की संख्या बढ रही थी और एक अच्छे डाक्टर की यहाँ सख्त जरूरत थी । आज जहाँ भवाली बाजार में खादी आश्रम है , वह पूरा भवन डा प्रेमलाल शाह द्वारा 1928 में बनवाया गया था । वहीं पीछे की तरफ मरीज़ देखने का उनका कमरा था ।
artificial pneumothorax यह बहुत ही दर्द भरा और ख़तरनाक इलाज था जिसके दौरान कुछ कुछ अंतराल पर एक सुई सीने में डालकर और उससे आक्सीजन प्रवेश कराकर फेफड़े को collapse किया जाता था , इसे ही Artificial Pneumothorax कहते हैं। कमला जी को इस आपरेशन की पहली रात मारफीन दी जाती थी और दूसरे दिन लोकल एनेस्थीसिया के बाद सीने में नीडिल डालकर आक्सीजन पम्प की जाती थी । यह इलाज तत्काल काम नही करता था और कभी कभी तो करता भी नही था तो इस तरह के पाँच छ आपरेशन अतिरिक्त कर आक्सीजन पास कराई जाती थी जिसके तमाम दुष्परिणाम और गम्भीर जटिलतायें भी होते थे । यह काम बहुत ही तकनीकी विशेषज्ञ का था और जिसके डा प्रेम लाल शाह विशेषज्ञ माने जाते थे ।
उल्लेखनीय है कि उस समय तक टी बी की कोई दवा ईजाद हो नही हो पायी थी ।
( फोटो में भवाली में डाक्टर प्रेमलाल शाह जी के साथ कमला नेहरू जी मरीज़ के रूप में और दूसरे में नेहरू जी डाक्टर शाह साहब के साथ। कमला जी मृत्यु से एक साल पूर्व की फोटो पर चेहरे में चमक ,नाक नक़्श बेटी इंदिरा की तरह ही ।
वाया Shalendra pratp singh singh