स्मृति शेष
श्रीमती #गौरापंत, जिन्हें शिवानी के नाम से जाना जाता है, शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर, 1923 को #राजकोट,में हुआ था। उनके पिता श्री अश्विनी कुमार पांडे शिक्षक थे और उनकी माँ संस्कृत विद्वान थीं,
शिवानी लखनऊ महिला विद्यालय की पहली छात्रा थीं।
श्रीमती गौरा पंत 20वीं सदी की हिंदी कहानीकारों की प्रतीक थीं और उनकी कहानियाँ भारतीय महिलाओं पर केंद्रित थीं।
गौरा पंत ने #शांतिनिकेतन में नौ साल बिताए और 1943 में #विश्वभारतीविश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। शांतिनिकेतन में बिताए दिनों की यादें उनके संस्मरण आमदेर शांतिनिकेतन में लिखी गई हैं । #रवींद्रनाथटैगोर कई बार अल्मोड़ा में उनके पैतृक घर आए हैं।
कभी ‘स्वतन्त्र भारत’ के लिए ‘शिवानी’ ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा। उनके लखनऊ स्थित आवास 66, #गुलिस्ताँकालोनी के द्वार, लेखकों, कलाकारों, साहित्य प्रेमियों के साथ समाज के हर वर्ग जुड़े उनके पाठकों के लिए सदैव खुले रहे।
1982 में शिवानी जी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से अलंकृत किया गया। शिवानी जी का 21 मार्च, 2003 को दिल्ली में 79 वर्ष की आयु में निधन हुआ था ।
कुमायूँ के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड़े दिलचस्प अंदाज़ में किया।
कुमायूँ के लोग खासी तादाद में लखनऊ में हैं उनका अब सियासी रसूख भी है वे चाहें तो लखनऊ में शिवानी जी की याद में स्मृति चिन्ह स्थापित हो सकता है ।
अल्मोड़ा में भी।