SANJOG WALTER
Friday, November 14, 2025
Tuesday, March 25, 2025
#लखनऊ वाले भूल गए #अल्मोड़ा वाले भूल गए एक थीं #शिवानी।
स्मृति शेष
श्रीमती #गौरापंत, जिन्हें शिवानी के नाम से जाना जाता है, शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर, 1923 को #राजकोट,में हुआ था। उनके पिता श्री अश्विनी कुमार पांडे शिक्षक थे और उनकी माँ संस्कृत विद्वान थीं,
शिवानी लखनऊ महिला विद्यालय की पहली छात्रा थीं।
श्रीमती गौरा पंत 20वीं सदी की हिंदी कहानीकारों की प्रतीक थीं और उनकी कहानियाँ भारतीय महिलाओं पर केंद्रित थीं।
गौरा पंत ने #शांतिनिकेतन में नौ साल बिताए और 1943 में #विश्वभारतीविश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। शांतिनिकेतन में बिताए दिनों की यादें उनके संस्मरण आमदेर शांतिनिकेतन में लिखी गई हैं । #रवींद्रनाथटैगोर कई बार अल्मोड़ा में उनके पैतृक घर आए हैं।
कभी ‘स्वतन्त्र भारत’ के लिए ‘शिवानी’ ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा। उनके लखनऊ स्थित आवास 66, #गुलिस्ताँकालोनी के द्वार, लेखकों, कलाकारों, साहित्य प्रेमियों के साथ समाज के हर वर्ग जुड़े उनके पाठकों के लिए सदैव खुले रहे।
1982 में शिवानी जी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से अलंकृत किया गया। शिवानी जी का 21 मार्च, 2003 को दिल्ली में 79 वर्ष की आयु में निधन हुआ था ।
कुमायूँ के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड़े दिलचस्प अंदाज़ में किया।
कुमायूँ के लोग खासी तादाद में लखनऊ में हैं उनका अब सियासी रसूख भी है वे चाहें तो लखनऊ में शिवानी जी की याद में स्मृति चिन्ह स्थापित हो सकता है ।
अल्मोड़ा में भी।
सिगरेट वाले बाबा/ कप्तान बाबा
लखनऊ के #मूसाबाग में लडाई 18 मार्च 1858 को शुरू हुई थी। इस लडाई मे घायल कैप्टन एफ. वेल्स की की मौत 21 मार्च 1858 को यहां हुई थी । उस समय की परंपरा अनुसार युद्ध घायल सैनिक व अधिकारी लडाई वाली जगह पर दफना दिए जाते थे ।
कैप्टन एफ वेल्स की कब्र को उनके दोस्त और कैप्टन एल बी जोंस ने बनवाया था।
पता नहीं कब कैप्टन एफ वेल्स वॉल
सिगरेट वाले बाबा/ कप्तान बाबा के रूप मे मशहूर हो गए और उनके कब्र पर सिगरेट और शराब चढ़ने लगी । फिर दावा किए जाने लगा कि यहां जो मुराद मांगी जाती है वह पूरी होती है।
सिगरेट वाले बाबा/ कप्तान बाबा के रूप मे मशहूर हो गए और उनके कब्र पर सिगरेट और शराब चढ़ने लगी । फिर दावा किए जाने लगा कि यहां जो मुराद मांगी जाती है वह पूरी होती है।
#लखनऊ के अनपढ़ों ने इस कब्र को मज़ार कहना शुरू कर दिया और लखनऊ के पत्रकारों ने इस दरगाह कहना शुरू कर दिया। एक कब्र को दरगाह लिखने वाले या मजार लिखने वालों की दिमागी हालत क्या रहती होगी इसका अंदाजा लगाना कोई कठिन काम नहीं है।
#विश्वक्षयरोगदिवस
भवाली आने के बाद #कमलानेहरू की जिंदगी अगले करीब 9 महीने तक मरीज के रूप में बिस्तर तक ही सीमित रही । उनके रेडियोग्राफ से पता चला कि उनका बायें फेफेडा काफी छतिग्रस्त है और डाक्टरों ने उसके artificial pneumothorax का निर्णय लिया । उस समय भवाली के प्राइवेट डाक्टर प्रेम लाल शाह जी artificial pneumothorax के विशेषज्ञ समझे जाते थे । इलाज के लिये सेनेटोरियम से निकालकर उन्हे डा शाह के पास लाया गया और उस समय कमला जी की पूरी टीम का निवास बना घोडाखाल तिराहे के पास भीमताल को जाने वाले पैदल रास्ते पर बने कांग्रेसी नेता हीरालाल शाह का मकान ‘ चंद्र भवन ‘ । बाद में हीरालाल शाह जी के इसी मकान में कुछ दिन क्रांतिकारी यशपाल जी और फिर मधुमति फ़िल्म की शूटिंग के समय दिलीप कुमार जी भी रहे ।
डाक्टर प्रेम लाल शाह मूलत: नैनीताल के रहने वाले थे । आगरा मेडिकल कालेज , फिर कलकत्ता और उसके बाद वेल्लौर से फेफड़ों के सम्बंध में विशेषज्ञता प्राप्त कर 1926 के आसपास भवाली आ गये क्योकि उस समय भवाली में टी बी सेनोटोरियम के कारण बाह्यरोगियों की संख्या बढ रही थी और एक अच्छे डाक्टर की यहाँ सख्त जरूरत थी । आज जहाँ भवाली बाजार में खादी आश्रम है , वह पूरा भवन डा प्रेमलाल शाह द्वारा 1928 में बनवाया गया था । वहीं पीछे की तरफ मरीज़ देखने का उनका कमरा था ।
artificial pneumothorax यह बहुत ही दर्द भरा और ख़तरनाक इलाज था जिसके दौरान कुछ कुछ अंतराल पर एक सुई सीने में डालकर और उससे आक्सीजन प्रवेश कराकर फेफड़े को collapse किया जाता था , इसे ही Artificial Pneumothorax कहते हैं। कमला जी को इस आपरेशन की पहली रात मारफीन दी जाती थी और दूसरे दिन लोकल एनेस्थीसिया के बाद सीने में नीडिल डालकर आक्सीजन पम्प की जाती थी । यह इलाज तत्काल काम नही करता था और कभी कभी तो करता भी नही था तो इस तरह के पाँच छ आपरेशन अतिरिक्त कर आक्सीजन पास कराई जाती थी जिसके तमाम दुष्परिणाम और गम्भीर जटिलतायें भी होते थे । यह काम बहुत ही तकनीकी विशेषज्ञ का था और जिसके डा प्रेम लाल शाह विशेषज्ञ माने जाते थे ।
उल्लेखनीय है कि उस समय तक टी बी की कोई दवा ईजाद हो नही हो पायी थी ।
( फोटो में भवाली में डाक्टर प्रेमलाल शाह जी के साथ कमला नेहरू जी मरीज़ के रूप में और दूसरे में नेहरू जी डाक्टर शाह साहब के साथ। कमला जी मृत्यु से एक साल पूर्व की फोटो पर चेहरे में चमक ,नाक नक़्श बेटी इंदिरा की तरह ही ।
वाया Shalendra pratp singh singh
Tuesday, December 31, 2019
Monday, February 20, 2017
Tuesday, July 19, 2016
कभी तनहाइयों में यूँ हमारी याद आएगी
स्वप्निल संसार। हिंदी सिनेमा में शमशाद बेगम, सुधा मल्होत्रा, कमल बारोट, उषा मंगेशकर, रुमागुहा ठाकुरता,जगजीत कौर,सुमन कल्याणपुर,शारदा ने मंगेशकर बैरियर पार करने की कोशिश की पर इन सब को कामयाबी नहीं मिली,ऐसा ही एक नाम और है मुबारक बेगम का,मुबारक बेगम भी इस बैरियर को पार नहीं कर सकी,मुबारक बेगम के बारे में बहुत ज्यादा कुछ पता नहीं है मसलन वो कब चुरू से बम्बई आई पहली बार किस फिल्म के लिए गाना गया ? उनकी पैदाइश 1940 की बताई जाती है फिल्मों में आने से पहले वो औल इंडिया रेडियो पर गाती थी और 1953 में फिल्म दायरा के लिए उन्होंने गीत गाये थी, ज़ाहिर है की 13 साल की उम्र में तो यह सब नहीं किया होगा,मुबारक बेगंम की पैदाइश सुजान गढ़(चुरू) राजस्थान में हुई थी ऐसा कहा जाता है पर खुद उन्होंने एक बार बताया था की अहमदाबाद में उनके पिता जी फल का कारोबार करते थे।
मुबारक बेगम ने औल इंडिया रेडियो से अपने कैरियर की शुरुआत की थी सुगम संगीत से और 1950 के दशक में हिंदी फिल्मों में गाने का मौक़ा मिल गया,कभी तनहाइयों में यूँ " केदार शर्मा की फिल्म :हमारी याद आएगी (1961) गीत लिखा था केदार शर्मा ने,कम्पोजर थे स्नेहल भाटकर यह गीत हिंदी सिनेमा गीतों के इतिहास में classic के तौर पर हमेशा के लिए दर्ज़ हो चुका है,मुबारक बेगम ने अपने कैरियर की शुरुआत शायद कमाल अमरोही की फिल्म "दायरा"(1953) से थी "देवता तुम हो मेरा सहारा" इस गाने में उनके साथ थी लता मंगेशकर.1955 में बिमल राय की देवदास में उनको एसडी बर्मन "वो ना आएंगे पलट कर" गाने का मौक़ा मिला, बिमल रॉय की मधुमति 1958 में हम हाल-ऐ-दिल सुनायेगे,सलिल चौधरी कम्पोजर थे "मुझको अपने लगा लो ऐ मेरे हमराही" फिल्म हमराही (1963) में मो.रफी के साथ शंकर - जयकिशन कम्पोजर थे लगभग 53 साल के बाद भी यह गाना आज भी अच्छा लगता है.मुबारक बेगम ने शंकर- जयकिशन, एसडी बर्मन, सलिल चौधरी, कल्याणजी - आनंदजी, खय्याम, नौशाद, मदन मोहन और नाशाद की धुनो पर गाने गाये, बॉलीवुड की क्रूर आंतरिक राजनीति और "मंगेशकर बैरियर की वज़ह से वो मुकाम नहीं हासिल कर सकी जिसकी वो हकदार थी,1970 के आस पास को हार गयी,अब से कई साल पहले जावेद अख्तर और सुनील दत्त, (अब मरहूम ) ने मुबारक बेगम की सुधि ली और मुंबई के जोगेश्वरी में एक सरकारी मकान उन्हें एलाट करवा के दिया था जहाँ वो अपने बेटे और बीमार बेटी शफक बानो के साथ रह रही थी जो अपाहिज है और पार्किंसंस रोग से ग्रस्त है. उनका बेटा टैक्सी चलाता है,पिछले कुछ सालों से मुबारक बेगम खुद भी बीमार रहने लगी थीं ,महाराष्ट्र सरकार ने अक्तूबर 2011 में बीमार बुजुर्ग मुबारक बेगम के इलाज के लिए एक लाख रुपये की वित्तीय सहायता मंजूर थी "मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मुख्यमंत्री राहत कोष से एक लाख की वित्तीय सहायता दी थी ,मुबारक बेगम को सरकारी मकान के अलावा 1400/-रूपये की पेंशन भी जावेद अख्तर और सुनील दत्त, (अब मरहूम ) ने बंधवा दी थी, दत्त साहब के इंतकाल के बाद सुना है की अक्सर जावेद अख्तर साहब मुबारक बेगम की खोज खबर लेते रहते है कुछ एन.आर.आई और लोग भी उनकी मद्दद कर देते थे उनके बैंक अकाउंट में रूपये जमा करवा देते थे।
2004 में और 2006 में मुबारक बेगम के कई गानों के रिमिक्स एल्बम रिलीज़ हुए जिन्हें संगीत प्रेमियों ने हाथों हाथ लिया था,कई म्यूजिक कम्पनियों ने मुबारक बेगम के गाने रिमिक्स एल्बम की शक्ल में बाज़ार में में उत्तार दिए,मुबारक बेगम अपनी गजलों के लिए हमेशा याद रहेंगी, 1980 में अलबम "रामू तो दीवाना है" के लिए सवारिया तेरी याद में उन्होंने आखिरी बार गाया,कई सालों से वो मुफलिसी और गुमनामी की ज़िंदगी जी रही थी।
मुबारक बेगम ने 18 जुलाई 2016 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। फ़िल्मी दुनिया से सिर्फ रज़ा मुराद ही उनकी मिट्टी में शामिल हुए। हाल के सालों में सलमान खान भी उनकी आर्थिक मदद किया करते थे।
मुबारक बेगम के कुछ मशहूर गाने ,"शमा गुल करके न जा "अरब का सितारा (1960),"कभी तनहाइयों में हमारी याद आएगी" (हमारी याद आयेगी 1961 ),"आयजी आयजी याद रखना सनम" (डाकू मंसूर 1961),"नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले" (यह दिल किसको दूं 1963)
"मुझ को अपने गले लगा लो " (हमराही 1963 ) हमें दम दएके" ( यह दिल किसको दूं 1963) ,"ए दिल बता ' (खूनी खज़ाना 1964 )
"कुछ अजनबी से आप हैं " शगुन 1964 "बे -मुरव्वत बे -वफ़ा बेगाना -ऐ दिल आप हैं " (सुशीला 1966) सावरिया तेरी याद में "रामू तो दीवाना है (1980)
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