Wednesday, February 17, 2010

अपील बदायूं मिशन ब्योस स्कूल बिकने के कगार पर

बदायूं में तहसील गेट के सामने बदायूं मिशन ब्योस स्कूल है जो बिकने के कगार पर अपना यह स्कूल भू माफियाओं की पहली पसंद रहा है.क्योँ की अब यह सम्पति शहर के बीच में और अब यहाँ मार्केट काम्प्लेक्स बनाइये जाने की योजना है, लिहाज़ा मिशन स्कूल बदायूं से ताल्लुक रखने वाले सभी ओल्ड स्टुडेंट सामने आयें और इस स्कूल को बिकने से बचाएं,इस मामले में माननीय उच्चतम न्यालय में रिट की जा रही है,आप दुनिया के किसी भी कोने में हों,पर मिशन स्कूल को सेव करने में मदद करें
थैंक्स
संजोग वाल्टर ओल्ड स्टुडेंट मिशन स्कूल बदायूं
94157 68680,9936826720
sanjogwalter@gmail.com

"लाठी"

वैसे तो बात बहुत लम्बी है,पर कही न कही से शुरुआत होनी थी सूबे की राजधानी लखनऊ में विधान सभा गेट न.३ के सामने धरना स्थल हुआ करता था,अक्सर प्रदर्शनकारी विधान सभा मार्ग जाम कर दिया करते थे जाम खुलवाने और राज भवन व् मुख्यमंत्री आवास की और जाने से रोकने के लिए पुलिस द्वारा "लाठी" का इस्तेमाल होता रहा कभी प्रदर्शनकारीयों को ठोकने के अलावा और कोई चारा नहीं था कभी अधिकारी अपनी खिज़ मिटाने के "लाठी" का इस्तेमाल करते रहे, अक्सर राहगीर "लाठीचार्ज" की ज़द में आ जाते, कभी लाठी चलती नहीं पर घंटों विधान सभा मार्ग जाम रहता कई अस्पताल,दफ्तर,स्कूल आने जाने वाले परेशान होते.शासन से फरमान जारी हुआ और धरना स्थल शहीद स्मारक को बना दिया गया.जबकी यह रास्ता है मेडीकल यूनिवर्सिटी,ट्रौमा सेंटर.के अलावा कई अस्पताल इसी रास्ते पर हैं,हाई कोर्ट के साथ कई दफ्तर जाने के लिए सिर्फ येही एक रास्ता है,पर अब यहाँ भी जाम लगने लगा और अक्सर वाटर कैनन का इस्तेमाल होता और "लाठीचार्ज" होता है.जिस मकसद के चलते विधान सभा मार्ग से धरना स्थल हटाया गया था वो पूरा नहीं हुआ.जब आम लोगों को योंही घंटों जाम में फसें रहना है तो विधान सभा मार्ग मार्ग में क्या बुराई थी ? १६ फरवरी को कोंग्रेस के प्रदर्शन के दौरान जो गलतीयां की गयी क्या उन्हें दुबारा नहीं दोहराया नहीं रिपीट किया जाएगा ? अब लोकतंत्र है. तो धरना प्रदर्शन तो होगा ही फिर "लाठी" का सहारा क्यों ? शायद भारत में २ पार्टीयाँ "लाठी" का मज़ा नहीं जानती है,1बहुजन समाज पार्टी 2 भारतीय जनता पार्टी,बहुजन समाज पार्टी की और से वैसे तो ऐसे कोई कार्यक्रम नहीं होते अगर होते हैं उस वक्त वो सत्ता में होती है, कार्यक्रम कामयाब रहे यह जिम्मेदारी प्रशासन की होती है,भारतीय जनता पार्टी के नेता सज्जन कार्यकर्ता सज्जन कुल मिला कर विद्वानों की पार्टी भला कौन यह गुनाह करेगा की भारतीय जनता पार्टी के सज्जन कार्यकर्ता पार्टी दफ्तर से निकल कर हजरतगंज चौराहे पर जाम प्रदर्शन करें और वापस पार्टी दफ्तर फिर कुछ लड़के पुलिस पर पतथर फेंकें मौके पर मौजूद अफ्सारान मिडिया को देखकर कर कहते है लड़के हैं शैतानी कर रहें हैं,भाई ऐसे ही शैतानी सब को करने दें,खैर बात हो रही थी कुछ और बेहतर होता की धरना स्थल शहर से बाहर हो

Wednesday, February 10, 2010

कॉलरा हॉस्पिटल सिर्फ एक नाम भर नहीं है

हुआ तब कुछ नहीं था जब 100 साल पुरानी हज़रतगंज कोतवाली ज़मींदोज़ हो गयी,ना जाने कितने ऐसे संस्मारक हैं,जहाँ कब्जे हैं,अगर एक इमारत और गिर जाती है तो क्या फर्क पडेगा इस शहर की ज़िन्दगी पर.इमारत होती है तोड़ने के लिए,तारे वाली कोठी,कर्नल दिलकुश की कोठी,सिविल सर्जन आफिस,ज़नरल की कोठी,अब इन सब का ज़िर्क किताबों में ही रह गया है,ना जाने कितने कब्रिस्तान,शमशान लील लिए गये,तालाब घोल कर पी गये,नालों और सड़कों पर मकान,दूकान सीना तान कर खड़े हैं "हिम्मत है तो छु कर दिखाओ, वैसे भी बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर की यह छोटी सी बानगी है,गरीब गुरबों को सस्ता इलाज़ वो भी 5 रूपये में इसी शहर में मिलता था,क्योंकी सरकार की तरफ से सब कुछ यहाँ कॉलरा हॉस्पिटल में मुफ्त मिलता था,डेथ टोल ना के बराबर,ना आन्दोलन ना चर्चा,ना रिट हुई,कॉलरा हॉस्पिटल सिर्फ एक नाम भर नहीं है ना जाने कितने लोगों की पनाह गाह रहा,मरीज़ भी खुश तीमारदार भी खुश,शाहजहाँ बाज़ी हो या निगम आंटी इनका नाम ही काफी था यहाँ, दुलारे माली भैया की आवाज़,भंडारी चाचा,राम मिलन,और लामू भैया( रामू ) की आवाजों का अहसास गाना गाते हुए इतवारी,जुगाड़ की तलाश में शमीम भाई,विजय लक्ष्मीजी का हिसाब किताब,और यहाँ पर क्या छोटे बड़े सब कहते थे "संजू भैया " जो आज तक ""संजू भैया " हैं जहाँ में रहता हूँ वहां आज भी लोग "संजोग" को नहीं जानते "संजू भैया " को जानते हैं,( जारी है )

Tuesday, February 9, 2010

एक था अस्पताल

कालरा अस्पताल,कुत्ते वाला अस्पताल,घोड़ा अस्पताल,हैजा अस्पताल, जिसकी जैसी सहूलियत उसने इस अस्पताल का नाम रख लिया,दरअसल इस का नाम था " कॉलरा होस्पीटल" और सरकारी भाषा में इसे " राजकीय संक्रामक रोग चिकित्सालय" के नाम से जाना जाता था,एक दौर था जब 6 महीने कमरुद्दीन बाबू डे ड्यूटी करते थे और शुक्लाजी NIGHT ड्यूटी और बाकी कर्मचारी और अधिकारी टहलने कभी 2 आ जाते,1991 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय पुराने लखनऊ में बारात में लोग फ़ूड POISIONING का शिकार हो गये,माहौल था चुनाव सब दल जुट गये "समाज सेवा" में मरीज़ अस्पताल आने लगे थे पर यहाँ तो ताला पड़ा था,करीब 200 लोग बीमार,आनन् फानन में सब कुछ बदल गया क्लास 3,4 के अलावा सब बदल दिए गये रात होते-2 निजाम भी बदला और सूरत भी और सुबह ऐसा लग रहा था की कोई सोती राजकुमारी जाग गयी हो,JNERATER AMBULANCE के साथ ड्राइवर भी,यह सुधार वादी आन्दोलन लगभग 12 साल चला अब तक इस अस्पताल के आदी मरीज़ भी खुश थे,2003 में यह अस्पताल,K.G.M.U.को सौंपे जाने का फैसला हो गया और धीरे से सब कालेज के पास चला गया अस्पताल से फिर दूर हो गये थे मरीज़ और अब पुरानी इमारत को गिराकर नये भवन की रुपरेखा बन चुकी है,कभी यह पुलिस होस्पीटल था और तब नबी उल्लाह रोड का नाम बुलंद बाग़ रोड हुआ करता था आज़ादी के बाद तब की MUNICIPALITY इसकी देख रेख करती थी,बाद में इसे राज्य को दे दिया गया,आज लगभग यह अस्पताल खाली हो चुका जिनकी कई पुश्तों ने इस अस्पताल में अपना योगदान दिया वे सभी जा चुकें हैं (जारी है )

Friday, February 5, 2010

आपको को तो पुलिस रोकती नहीं है

अगर आप हैलमेट का इस्तेमाल करतें हैं तो यकीनन लखनऊ पुलिस आपको रोकेगी नहीं,बाइक चलाते वक्त मेरा ताज मेरे सर पर होता है,और लोग हमेशा मुझसे सवाल करतें हैं आपको को तो पुलिस रोकती नहीं है फिर आप क्यों हैलमेट लगाते हैं ?मेने जगह २ लोगों को देखा है की हैलमेट बाइक पर पीछे बैठने वाले के हाथ में होता है और पुलिस को देखते ही सर पर,अगर टाइमिंग अचछी नहीं रही तो हैलमेट ना पहने के १० बहाने शुरू.आज "देवा" इस दुनिया में नहीं है,साइकल वाले से टकरा गये हेड इंजरी हो गयी इलाज़ होता रहा,चुपके से आई मौत उन्हें अपने आगोश में ले गयी,विशाल भाई इस लिए बच गये की वो हैलमेट पहने थे,आज लखनऊ देश के हर छोटे बड़े शहर में ना जाने कितने लोग बगैर हैलमेट मौत का शिकार होते हैं, हैलमेट बाइक पर कहीं ना कहीं बंधा होता है,लोगों को ३०० रूपये का जुर्माना अदा करना पड़ता है,इसलिए हैलमेट साथ में होता है वरना कम लोगों को परवाह अपने सर की.