२१ अप्रैल १९१३ को भारत की पहली फिल्म "राजा हरीशचन्द्र " का प्रदर्शन हुआ था और जल्दी लखनऊ और हिंदी सिनेमा का नाता जुड़ गया जो आज भी कायम है
लखनऊ 60-70 के दशक में BOLLYWOOD की खास पसंद रहा था,नवाब,कोठे,और तवायफ की जिंदगी-तहजीब और नफासत बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की भीड़ बटोरती रही,यह सिलसिला मधुबाला की "एक साल" से शुरू हुआ था जो लखनऊ की रजनी की सच्ची कहानी पर आधारित थी, गुरुदत्त की चौदहवीं का चाँद (1960),ने लखनऊ को नयी पहचान दे दी,तब संगीतकार रवि की धुन पर शकील बदायुनी ने लखनऊ के नाम पर एक अमर गीत लिख दिया "ये लखनऊ की सरज़मी" इस गाने में जो कसर रह गयी थी उसे फिल्म पालकी (1966) में पूरा कर दिया, महेश कॉल की "पालकी" (1966)जिसमें राजेन्द्र कुमार वहीदा रहमान की मुख्य भूमिका थी संगीतकार थे लखनऊ के नौशाद अली, एक बार शकील बदायुनी ने लखनऊ को समर्पित गीत की रचना कर दी,"शहरे लखनऊ तुझ को मेरा सलाम है"हरनाम सिंह रवैल (जो राहुल रवैल के पिता थे) ने मेरे महबूब (1963) बनाई तो वो भी सुपर हिट रही,मेरे हुजुर (1966) गीत रामानंद सागर (1970),महबूब की मेंहदी (1971) कमाल अमरोही की पाकीजा (1972),शक्ती सामंत अनुरोध (1975) शशिकपूर की जुनून(1978),सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाडी(1978) राजश्री की सावन को आने दो (1980) मुज्ज़फर अली की उमराव जान (1981),गमन,अंजुमन,दीदारेयार(1982)बहु -बेगम, दहेज़,शीश महल मेंहदी,शमा, ग़दर एक प्रेम कथा जे.पी.दत्ता की उमराव जान(2006), बाबर,ओमकारा,मैं मेरी पत्नी और वो,अनवर,कबीर कौशिक की फिल्म "शहर" एक IPS की पर आधारित थी.बीते दिनों "तनु वेड्स मनु" की शूटिंग यहाँ हुई, इन सभी फिल्मों में लखनऊ के दीदार होते रहे.बटवारे के वक़्त सुनील दत्त ने लखनऊ की गन्ने वाली गली के मकान न.102 में काफी साल बिताये,संजय दत्त जब लखनऊ से लोकसभा उम्मीदवार के रूप में सामने आये तो लखनऊ और BOLLYWOOD का नाता एक बार फिर सामने आया,1996 राज बब्बर,2004 में मुज्ज़फर अली और 2009 में नफीसा अली ने यहाँ से लोकसभा चुनाव लड़ा.बेगम अख्तर का जिक्र किये बिना यह सफ़र अधुरा रहे जाऐगा,यह बात और ही की ग़ज़ल और ठुमरी की मल्लिका ने चंद फिल्मों में ही गाया,पर बेगम अख्तर और लखनऊ का नाम एक पहलु के दो सिक्के हैं, (बेगम अख्तर की कब्र पुराने लखनऊ के वजीरबाग के पसंद बाग में है)
लखनऊ मैं कभी कई निर्मातों के दफ्तर व studioहुआ करते थे कुछ के निशान अभी भी बाकि हैं लखनऊ मैं,गुज़रे वक्त मैं तारीखी लम्हों के साथी बने कई सिनेमा हाल बंद हो चुकें और कुछ बंद होने की तयारी मैं इसी शहर के अमीनाबाद बाज़ार में लैला भी कभी मिली थी (गाना फिल्म मेरे हुजुर से) "एक दिन लैला मिली मुझको अमीनाबाद में" अब लखनऊ में शूट होने हिन्दी फिल्मों से वो सब कुछ गायब हो गया है जिसके लिए लखनऊ जाना जाता था"लखनऊ से जुड़े फिल्मकार गीतकार-- 1.मजरूह सुल्तानपुरी,2. कैफी आज़मी,3.जानिसार अख्तर के बाद उनके बेटे 4. जावेद अख्तर संवाद लेखक \कहानीकार 1.भगवती चरण वर्मा,2. अमृत लाल नागर, 3.डा.कुमुद नागर,4.डा.अचला नागर, 5.वजाहत मिर्जा,6.के.पी.सक्सेना,संगीतकार 1.प.विश्न्नु नारायण भातखंडे,(भातखंडे के नाम पर अब univercity भी है)2.नौशाद अली,निर्माता\निर्देशक 1.अलीरजा,2.अली सरदार जाफरी, 3.इस्माइल मर्चंट,(शेक्स्पिर्वाला) गायक,गायिका 1.तलत महमूद,2.अनूप जलोटा,3.बाबा सैहगल 1.बेगम अख्तर 2.पूनम जाटव, अभिनेता\अभिनेत्री 1.वीणा राय, जो बाद में प्रेम नाथ की पत्नी बनी,2. जया भट्टाचार्या,आप लोगों को फिल्म शोले का खास किरदार साम्भा तो याद ही ना ? मेक मोहन इनका ताल्लुक भी लखनऊ से है कथक के छेत्र में 1.लच्छु महाराज,2.शम्भू महाराज,3.बिरजू महाराज,3.अच्छन महाराज
लखनऊ के फिल्मों मे योगदान का ऐतिहासिक विवेचन समसामयिक होने के साथ-साथ उत्तम अभिव्यक्ति भी है। फिल्मों के 89 वर्ष के इतिहास को इतने संक्षेप मे इतने सुंदर ढंग से प्रस्तुत करने हेतु धन्यवाद।
ReplyDeleteThanks Mathur sahab
ReplyDeleteगागर में सागर !
ReplyDeleteलखनऊ के गौरवशाली अतीत के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteजैसे लखनऊ के दो नवाबों की गाड़ी---पहले आप पहले आप पहले आप कहते हुये छूट गई थी, बॉबी के गीत "अक्सर कोई लड़की इस हाल में " में भी लखनऊ का जिक्र हुआ था.
ReplyDeleteलगभग 30-31 पंक्तियों में भारतीय सिनेमा का इतिहास, लखनऊ से उसका नाता और वहाँ की अमर हस्तियों के बारे में लिखना किसी नक्काशी से कम नहीं है. पढ़ कर मन तृप्त हो गया.
शुक्रिया आप सब का
ReplyDeleteनिगम साहब बोबी का गीत याद करवाने के लिए शुक्रिया