Tuesday, October 19, 2010

महाराजाधिराज टिकेत राय

अवध की गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल को लखनऊ में सालों साल जिंदा रखा गया,नवाबों और बेगमों ने मंदिर तामीर करवाए तो राजाओं ने मस्जिदों और इमाम बाड़ों की तामीर करवाई,इतिहास के पन्ने पलटने पर अवध की तारीख में महाराजाधिराज टिकेत राय के नाम का ज़िर्क किये बिना यह सफरनामा अधूरा रहेगा.
महाराजाधिराज टिकेत राय ने उस वक़्त के भदेवां नाम के जंगल में एक तालाब की तामीर करवाई आज इस जगह को राजा जी पुरम के नाम से जाना जाता है,और तालाबों की तरह वक़्त के साथ यह भी सूख गया,सवारने के नाम पर एन.D,ऐ. की सरकार के वक़्त लखनऊ के तब के सांसद और प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने यहाँ मुज़िकल फौनटेंन की शुरूआत कर दी,कुछ साल तक तो यहाँ सब कुछ ठीक ठाक रहा,फिर सब कुछ धीरे २ गायब. ......खैर....... टिकेत राय जी ने एक मस्जिद की तामीर करवाई जो पुराने शहर के हैदर गंज में आज भी कायम है,टिकेत राय जी के नाम पर ओल्ड टिकेत गंज नाम का मोहल्ला और एक कालोनी भी है.महाराजा टिकेत राय अवध में प्रधान मंत्री हुआ करते थे,जो अवध के बादशाहों की तरह ही कला प्रेमी और भवन निर्माण में बेहद रूचि रखते थे,लखनऊ -हरदोई रोड रहमान खेडा के नजदीक बहेटा नदी पर एक पुल और शिव मंदिर की तामीर करवाई .तब यहाँ बना पुल लखनऊ और मलिहाबाद को जोड़ता था,संवत 1848 में बनी यह धरोहर आज उपेक्षा का शिकार हैं.१९२० के आसपास ऐ.एस.आई. ने पुल और मंदिर दोनों को संरक्षित कर लिया.

इंडो-इरानी कला पुल और मंदिर दोनों में मौजूद है,विशाल गेट दोनों तरफ बेहतरीन नक्काशी किये हुए ,खूबसूरत मेहराब से तराशा हुआ ,रख रखाव के बगैर पुल और शिव मंदिर अपना पुराना वुजूद खोते जा रहे हैं.

नदी के किनारे बना शिव मंदिर अपने वातु कला के कारण देखते ही बनता है.महा शिव रात्री पर स्थानीय लोग शिव मंदिर में जा कर पूजा अर्चना करने की रस्म जरुर निभा लेतें है .

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पुल और मंदिर दोनों को संरक्षित कर लिया और फाइलों में दर्ज कर भूल गया इस शिव मंदिर की और जल्द ही ध्यान नहीं दिया गया तो यह धरोहर अपना वुजूद खो बैठेगी.
( जागो बजरंगियों जागो )

एस.एस.न्यूज़

Monday, October 18, 2010

क्या मायावती उत्तर प्रदेश की सियासत में इतिहास रच देंगी ?

क्या मायावती उत्तर प्रदेश की सियासत में इतिहास रच देंगी ?

13 मई 2007 को सुश्री मायावती ने उत्तरप्रदेश की चौथी बार बागडोर संभाली थी,सुश्री मायावती अपने एक रिकार्ड अपने नाम कर चुकीं हैं और वो है, चौथी मुख्य मंत्री बनने का,उत्तर प्रदेश में अब तक किसी को 4 बार सी.एम् बनने का,किसी को भी यह मौक़ा नहीं मिला है, दूसरा रिकार्ड भी वो अपने अपने नाम कर चुकी है जो अब तक श्री मुलायम सिंह यादव के नाम था जिन्होंने जिन्होंने 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 मुख्य मंत्री की कुर्सी सभाली थी अब यह रिकार्ड सूबे में सबसे ज्यादा दिन मुख्य मंत्री रहने का जो सुश्री मायावती के नाम हो गया है,अब है एक और रिकार्ड अपने नाम कर क्या सुश्री मायावती उत्तर प्रदेश की सियासत में इतिहास रच देंगी ? और वो है 5 साल तक उत्तर प्रदेश में सी.एम्.बने रहने का जो आज तक किसी के नाम नहीं है, 1377 से लेकर आज तक कोई भी मुख्य मंत्री 5 साल तक राज नहीं कर सका.

क्या सुश्री मायावती उत्तर प्रदेश के इस मिथक को तोड़ने में कामयाब होंगी ?

उत्तर प्रदेश के अब तक के मुख्य मंत्री

Name Took Office Left Office Political Party

1 नवाब सर मुहम्मद अहमद सय्यद खान 3 Apr १९३७ 16 Jul 1937 Independent

2 गोविन्द बल्लभ पन्त 17 Jul 1937 2 Nov 1939 Indian National Congress

1 Apr 1946 25 Jan 1950

26 Jan 1950 20 May 1952

20 May 1952 27 Dec 1954

3 संपूर्णानंद 28 Dec १९५४ 9 Apr 1957 Indian National Congress

10 Apr 1957 6 Dec 1960

4 चन्द्र भानु गुप्ता 7 Dec 1960 14 Apr 1962 Indian National Congress

14 Apr १९६२ 1 Oct 1963

5 सुचेता कृपलानी 2 Oct 1963 13 Mar 1967 Indian National Congress

6 चन्द्र भानु गुप्ता [2] 14 Mar 1967 2 Apr 1967 Indian National Congress

7 चरण सिंह 3 Apr १९६७ 25 Feb 1968 Bharatiya Lok Dal

8 चन्द्र भानु गुप्ता [3] 26 Feb 1969 17 Feb 1970 Indian National Congress

9 चरण सिंह [2] 18 Feb 1970 1 Oct १९७० Bharatiya Lok Dal

President's Rule 2 Oct 1970 18 Oct 1970

10 त्रिभुवन नारायनं सिंह 18 Oct 1970 3 Apr 1971 Indian National Congress

11 कमलापति त्रिपाठी 4 Apr 1971 12 Jun १९७३ Indian National Congress

President's Rule 12 Jun 1973 8 Nov 1973

12 हेमवती नंदन बहुगुणा 8 Nov १९७३ 4 Apr १९७४ Indian National Congress

5 Apr 1974 29 Nov 1975

President's Rule 30 Nov 1975 21 Jan 1976

13 नारायण दत्त तिवारी 21 Jan 1976 30 Apr 1977 Indian National Congress

President's Rule 30 Apr 1977 23 Jun 1977

14 राम नरेश यादव 23 Jun १९७७ 27 Feb 1979 Janata Party

15 बनारसी दास 28 Feb १९७९ 17 Feb 1980 Janata Party

President's Rule 17 Feb 1980 9 Jun 1980

16 विश्वनाथ प्रताप सिंह 9 Jun 1980 18 Jul 1982 Indian National Congress

17 श्रीपति मिश्र 19 Jul १९८२ 2 Aug 1984 Indian National Congress

18 नारायण दत्त तिवारी [2] 3 Aug 1984 10 Mar १९८५ Indian National Congress

11 Mar 1985 24 Sep 1985

19 वीर बहादुर सिंह 24 Sep 1985 24 Jun 1988 Indian National Congress

20 नारायण दत्त तिवारी [3] 25 Jun 1988 5 Dec 1989 Indian National Congress

21 मुलायम सिंह यादव 5 Dec 1989 24 Jun 1991 Janata Dal

22 कलायान्न सिंह 24 Jun 1991 6 Dec 1992 Bharatiya Janata Party

President's Rule 6 Dec 1992 4 Dec 1993

23 मुलायम सिंह यादव [2] 4 Dec 1993 3 Jun 1995 Samajwadi Party

24 मायावती 3 Jun 1995 18 Oct 1995 Bahujan Samaj Party

President's Rule 18 Oct 1995 21 Mar 1997

25 मायावती [2] 21 Mar 1997 21 Sep 1997 Bahujan Samaj Party

26 कल्याण सिंह [2] 21 Sep 1997 21 Feb 1998 Bharatiya Janata Party

# जगदम्बिका Pal 21 Feb 1998 23 Feb 1998 Indian National Congress

27 कल्याण सिंह [3] 12 Nov १९९९ Bharatiya Janata Party

28 राम प्रकाश गुप्ता 12 Nov 1999 28 Oct 2000 Bharatiya Janata Party

29 राजनाथ सिंह 28 Oct २००० 8 Mar 2002 Bharatiya Janata Party

President's Rule 8 Mar 2002 3 May 2002

30 मायावती [3] 3 May 2002 29 Aug 2003 Bahujan Samaj Party

31 मुलायम सिंह यादव [3] 29 Aug 2003 13 May 2007 Samajwadi Party

32 मायावती [4] 13 May 2007 TILL NOW Bahujan Samaj Party

# Jagdambika Pal's position as CM is highly questioned.[1] UP Legislative assembly website does not includes him in List of Chief Ministers.[2]

Wednesday, October 13, 2010

...........फांसी दरवाज़ा.........

लखनऊ के आलम बाग़ का इलाका जो कभी अवध के बादशाह वाजिद अली शाह ने अपनी बेगम "आलम आरा" के लिए बनवाया था,और तब इस का नाम का महल आलम बाग़ था.ज़ाहिर सी बात है महल में दाखिल होने के लिए सदर दरवाज़े या गेट से होकर गुज़रना पड़ता था
,तो आलम बाग़ में ये गेट खोजते हैं ....... नहीं मिला न .....
चलिए शाही दरवाज़ा ही मिल जाए....... वो भी नहीं मिला अब क्या करें ?
फांसी दरवाज़ा यह भी नहीं ......
तो फिर अरे भाई आप गलत पता पूछ रहें हैं यह रहा चंदर नगर गेट कहाँ आप पुराने दौर की बात कर रहें हैं,बिरयानी की दुकान है,सब्जी मंडी मौजूद है,प्लास्टिक का सामान पी.सी.ओ.ऐ.टी.एम सभी कुछ है यहाँ.
महल आलम बाग़ के इस दरवाज़े की तामीर हुई 1847 से 1857 के बीच में.इस दरवाज़े की नाप है 17X13 मीटर दरवाज़े बीच में आने जाने के लिए 3X5 मीटर चौड़ी खुली जगह भी है और कुल उंचाई है करीब 11 मीटर,सुन्दर मेहराबों,शाखों,के साथ दो मछलियाँ भी बनी है, दरवाज़े को बंद करने के देवदार की लकड़ी के सुन्दर पल्ले बनाये गये थे अब दो के बजाये एक ही पल्ला यहाँ मौजूद हैं,4 मेहराबों पर बनी इस दरवाज़े की छत धन्नीयों पर टिकी है उपर जाने के लिए दोनों तरफ ज़ीने है जहाँ सिपाहियों के लिए कमरे बनाए गये थे, दरवाज़े में कई सुराख़ है यह सुराख़ थे दुश्मनों पर निगाह रखने के लिए.
1857 जंगे आजादी अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा मोर्चा यहाँ खोला गया और अंग्रेज़ी फौज के ज़नरल "औरटम"व मेजर हैव्लेक ने यहाँ ना जाने कितने क्रांतीवीरों को फांसी पर लटकवा दिया इतिहास में शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े के नाम से इस जगह को जाना जाता है ना की चंदर नगर गेट के नाम से, 1950 के बाद चंदर नगर के नाम से एक कालोनी बनी और गेट का नाम भी बदल दिया गया मेजर हैव्लेक की कब्र की रक्षा आज भी ऐ.एस.आई. कर रही है जो चंदर नगर में ही है और इतिहासिक शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े की रक्षा उसका नाम और वजूद बदल कर हो रही है
......... जारी है...................

.................रूमी गेट.....................

में हूँ रूमी गेट मेरी तामीर नवाब आसिफुद्दौला मिर्ज़ा मोहम्द्द याहिया खान ने जो सन 1775 ईस्वी से 1797 ईस्वी तक अवध के ताजदार थे ने करवाया था,ब़डा इमामबाड़ा, नौबत खाना,शाही वाबली,आसिफी मस्जिद और भूलभुलैया यह सब मेरे ही सामने बने. नवाब आसिफुद्दौला ने ईरान में बने ऐसे ही गेट के तर्ज़ पर मुझे तामीर किये जाने का फरमान हाफिज़ किफ़ायत उल्लाह के नाम जारी कर दिया,लखोरी इंटों के साथ चूने का प्लास्टर मुझ पर किया गया,मेरी वास्तु कला में हिन्दू मुस्लिम दोनों कलाओं का संगम है,सुंदर,मेहराबों और गुलदस्तों की कड़ीयों से मुझे सजाया गया है.
मेने इतिहास को बनते देखा है मच्छी भवन किला मेरी आखों के सामने तोड़ा गया मच्छी भवन कब्रिस्तान आज़ मी है मुझे याद है वो ज़माना जब गल्ला रुपये का आठ सेर बिकता था तब रूमी दरवाज़े यानि मेरे साये में बाज़ार हुआ करती थी तब व्यापारी

सब हिन्दू थे जब वो दुकानें रवोलते थे तो नवाब आसिफुद्दौला का नाम लेते थे.

मुझे याद है ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौजें ने आलमबाग फ़तेह कर ने के बाद शाही दरवाज़े पर जाने कितने क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था.
आलमबाग, आलमनगर, धनिया मेहरी का पुल, मूसाबाग होकर मेरे सामने से निकला था अंग्रेजों का लश्कर और उनका निशाना था शाह नज़फ़ इमामबाड़ा - जहाँ क्रांतिकारियों ने ज़बरदस्त मोर्चा लगाया था.शाह नज़फ़ फ़तेह हुआ सिकंदरबाग़ पर जंग हुई सिकंदरबाग़ भी फ़तेह हुआ फिर चनों की बाज़ार जिसे तब चनों का हाट कहा जाता था यानि आज का चिनहट में भी ईस्ट इंडिया कम्पनी की फोज जीत गयी.

1857 से लेकर 1887 तक अंग्रेजों ने मुझ पर अपना कब्ज़ा बनाए रखा,और 15 अगस्त 1947 को बटवारें के बाद भारत को आज़ादी मिली बटवारें का गम आज़ादी की खुशी,और अब तक मेरे जिम्मेदारी हुसेनाबाद एलाइड ट्रस्ट को सौप दी गयी और ऐ.एस.आई को रख रखाव की.

पर यह न थी मेरी किस्मत, मेरी हिफाज़त के इंतज़ाम सिर्फ और सिर्फ कागजों पर होता रहा,और मुझे कुछ साल शराबियों,गांजा पीने वालों के सात गुजरने पड़े,पर वो साल कितना अच्छा था जब पर्यटन विभाग ने 60 लाख रूपये खर्च कर डाले और नीचे से लेकार उपर तक रोशनी कर डाली,मुझे याद है वो दौर जब यहाँ बंजर जमीन ,टीले हुआ करते थे और मकानात के नाम पर कुछ कच्चे घर और झोपड़ियाँ हुआ करती थी और तब देखते ही देखते यहिया गंज,फ़तेहगंज,वजीरगंज,रकाबगंज,मोलवीगंज,दौलतगंज,तिकेतगंज,अलीगंज,हुसैनगंज,हसनगंज,मुंशीगंज,लाहोर गंज,भवानीगंज,निवाज गंज गोलागंज ,चारबाग,ऐशबाग,बाद्शाहबाग यह सब मेरे ही सामने बने.

जिस लखनऊ को मेने बनते देखा था उसी लखनऊ के कुछ लोगों से मेरी यह खुशी नहीं देखी गयी,लोग आते थे मुझे देखने के बहाने और लाईट और तार खोल कर ले जाने लगे और एक दिन फिर में डूब गया अन्धेरें में और इसी साल मेरे सीने पर ताला जड दिया गया साल 2002 में प्रदूषण का असर मुझ पर हो गया था,मुझमे दरारे पड़नी शुरू हो गयी थी,तब हुक्मरानों ने तय किया की भारी वाहन यहाँ से होकर नहीं गुजरेंगे कुछ दिन तो इस फरमान परअमल हुआ फिर भूल गये .... और अब साल 2010 में कुछ लोगों को आठ साल पुरानी दरारे दिख रखी हैं तो बताइये क्या कुछ करेंगे आप मेरे लिए ?

.......... (जारी है )