लखनऊ के आलम बाग़ का इलाका जो कभी अवध के बादशाह वाजिद अली शाह ने अपनी बेगम "आलम आरा" के लिए बनवाया था,और तब इस का नाम का महल आलम बाग़ था.ज़ाहिर सी बात है महल में दाखिल होने के लिए सदर दरवाज़े या गेट से होकर गुज़रना पड़ता था
,तो आलम बाग़ में ये गेट खोजते हैं ....... नहीं मिला न .....
चलिए शाही दरवाज़ा ही मिल जाए....... वो भी नहीं मिला अब क्या करें ?
फांसी दरवाज़ा यह भी नहीं ......
तो फिर अरे भाई आप गलत पता पूछ रहें हैं यह रहा चंदर नगर गेट कहाँ आप पुराने दौर की बात कर रहें हैं,बिरयानी की दुकान है,सब्जी मंडी मौजूद है,प्लास्टिक का सामान पी.सी.ओ.ऐ.टी.एम सभी कुछ है यहाँ.
महल आलम बाग़ के इस दरवाज़े की तामीर हुई 1847 से 1857 के बीच में.इस दरवाज़े की नाप है 17X13 मीटर दरवाज़े बीच में आने जाने के लिए 3X5 मीटर चौड़ी खुली जगह भी है और कुल उंचाई है करीब 11 मीटर,सुन्दर मेहराबों,शाखों,के साथ दो मछलियाँ भी बनी है, दरवाज़े को बंद करने के देवदार की लकड़ी के सुन्दर पल्ले बनाये गये थे अब दो के बजाये एक ही पल्ला यहाँ मौजूद हैं,4 मेहराबों पर बनी इस दरवाज़े की छत धन्नीयों पर टिकी है उपर जाने के लिए दोनों तरफ ज़ीने है जहाँ सिपाहियों के लिए कमरे बनाए गये थे, दरवाज़े में कई सुराख़ है यह सुराख़ थे दुश्मनों पर निगाह रखने के लिए.
1857 जंगे आजादी अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा मोर्चा यहाँ खोला गया और अंग्रेज़ी फौज के ज़नरल "औरटम"व मेजर हैव्लेक ने यहाँ ना जाने कितने क्रांतीवीरों को फांसी पर लटकवा दिया इतिहास में शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े के नाम से इस जगह को जाना जाता है ना की चंदर नगर गेट के नाम से, 1950 के बाद चंदर नगर के नाम से एक कालोनी बनी और गेट का नाम भी बदल दिया गया मेजर हैव्लेक की कब्र की रक्षा आज भी ऐ.एस.आई. कर रही है जो चंदर नगर में ही है और इतिहासिक शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े की रक्षा उसका नाम और वजूद बदल कर हो रही है
......... जारी है...................
Sanjogji,
ReplyDeleteAapne sahi mudda uthaya hai Chander nagar gate ka naam fansi darwaza hi fir karvane ke liye kuch pahal kariye ,shayad sudhar ho hi jaye .
thanks... aapne to mujhe lko ke baare mein sateek information di ... aalam bag se hokar niklti to rahti hu... par history janne ke baad usse hokar gujarne ka alag hiinterest hoga....
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