1995 के बाद सब बदलने की शुरुआत हो चुकी थी,गुलाबो,सिताबो ना जाने कब गायब हो चुकी थी,सर्कस का दम निकल चुका था,इवनिंग शो और नाईट पिट गये थे,सुबह अखबार की ख़बरें अब हर मिनट में न्यूज़ चेनल पर मौजूद रहने लगी थी,अब मल्टीप्लेक्स का दौर है,जल्दी ही सिंगल विंडो सिनेमा हाल का अंत होने जा रहा है,अकेले लखनऊ में,नाज़ अशोक,प्रकाश,ओडियन,अलंकार,शिल्पी,आनंद,तुलसी,प्रिंस,कैपिटल,जयहिंद,मेहरा,जगत,निशात,किर्श्न्ना,सुदर्शन,बसंत,मेफेयर,अतीत का हिस्सा बन चुके है,जल्द ही मिट जायेगा रहे सहे सिनेमा हाल का वजूद.अगर मनोरंजन कर कम दिया गया होता तो यह तस्वीर दूसरी होती.कई सिनेमा हाल ऐसे हैं जिनकी यादें हमेशा जेहन में रहेंगी,मेफेयर में कई साल तक इंग्लिश फ़िल्में ही लगती रही तो नाज़,अशोक,प्रकाश,मेहरा,जगत,किर्श्न्ना,सुदर्शन में 2nd RUN की फिल्में ही लगी,मेहरा ने 22 या 23 हफ्ते में चल रही फिल्म को खरीद के अपने यहाँ चलाया,जब सिल्वर जुबली की TROPHY आई तो उसमें मेहरा सिनेमा का नाम होता था,कई फिल्मों की सिल्वर,गोल्डेन,DIAMOND जुबली की फेहरिस्त में सबसे पहला नाम मेहरा सिनेमा हाल का था,पाकीज़ा पिट चुकी थी,पर 31 मार्च 1972 को हुई मीना कुमारी की मौत ने पाकीज़ा को हिट कर दिया,मेफेयर में सिल्वर जुबली हफ्ते में दुपट्टे बांटे गये थे.तीसरी कसम का दिवाला निकल गया पहले हफ्ते में फिल्म पिट गयी,निर्माता और गीतकार शेलेन्द्र को दिल का दौरा पड़ गया,क्योंकि वो अपनी जीवन भर की कमाई तीसरी कसम में लगा चुके थे,शेलेन्द्र की मौत के बाद "कैपिटल" में तीसरी कसम ने 50 हफ्ते पूरे किये थे,लीला,कैपिटल,गुलाब में एक साथ 6 जुलाई 1980 को रिलीज़ हुई थी,फ़िरोज़ खान की "कुर्बानी".एक दो साल एक ही सिनेमा हाल में एक ही फिल्म लगी रहती थी उस दौर में फिल्मिस्तान कम्पनी ने पूरे भारत में कई शहरों में सिनेमा हाल बनवाये जिनमें एक लखनऊ में था यह 1979 तक वजूद में रहा,क्योंकि फिल्मिस्तान कम्पनी लगातार चल घाटे के चलते अपना बोरिया बिस्तर समेट रही थी,फिल्मिस्तान कम्पनी खुद की बनाई गयी फिल्मों को सबसे पहले अपने सिनेमा हाल में रिलीज़ करती थी,फिल्मिस्तान में कई साल तक उनकी खुद की बनाई गयी फिल्म "नागिन" का प्रदर्शन होता रहा फिल्मिस्तान बिक गया और इसे नयी शक्ल और सूरत मिली,नयी फिल्म के साथ "अमरदीप" अब इस हाल का नाम है "साहू" .
"फिल्मस्तान" के बाद वाली बिल्डिंग में था "प्रिंस" किसी भी नए आने वाले के लिए एक ही बिल्डिंग में थे दोनों सिनेमा हाल,जब की ऐसा नहीं था,बायीं तरफ प्रिंस में लगी फिल्म के पोस्टर, तो दाहिनी तरफ फिल्मस्तान में लगी फिल्म के पोस्टर लगे रहते थे,फिल्मिस्तान के बाद वाली बिल्डिंग प्रिंस सिनेमा हाल की थी,वक्त का हंसी सितम प्रिंस सिनेमा हाल पर कहर बन कर टूटा,प्रिंस भी लगातार चल रहे घाटे के बिक गया और टूट गया,अब यहाँ है "प्रिंस मार्केट "......जारी है.....
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