"देवा" की मौत भी हेड इन्ज़री की वजह से हुई थी और "मयंक" की भी,"मयंक" से कई साल पहले तब मुलाक़ात हुई थी जब वो ऍफ़.एस.एन.में काम कर रहे थे,कुछ महीनों के बाद वे प्रिंट में स्टिल फोटोग्राफर काम करने लगे और कड़े संघर्ष के बाद अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे,अपनी बच्ची के एडमिशन के लिए जब भी मुलाकात होती थी बात करते थे,"मयंक" की माताजी का देहांत 2009 में हुआ और पिताजी की भी तबियत ख़राब है यह दूसरा एक्सीडेंट था,कई दिन कोमा में रहे फिर वो अपने कई साथीयों को वो गम दे गये जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी,अलविदा दोस्त." है अपना दिल तो आवारा " यह अब सुनने को नहीं मिलेगा."मयंक"के परिवार को भगवान् यह गम सहन करने की शक्ती प्रदान करे
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