Saturday, September 29, 2012

हुसैनाबाद घंटा



लखनऊ, हुसैनाबाद घंटा घर की घडी की सुइयां एक बार फिर थम गयी है,घंटों की आवाज़ भी थम गयी  है,बताया जाता है की घड़ी की मरम्मत का काम चल रहा है,हुसैनाबाद मुबारक ने सर जार्ज कूपर की याद में इस घंटा घर की तामीर करवाई थी साल 1881 में ,तब हुसैनाबाद मुबारक के ट्रस्टी लाला ब्रिज भूकन लाल हुआ करते थे,इस घडी की तामीर लन्दन के जेम्स डब्लू वेम्सन डव्लू   ने की थी,कई साल तक यह घड़ी चलती रही,पर बीच में यह बंद हो गयी थी,साल 2010 में को जिंदा करने की कवायद शुरू की गयी,साल 2011 में  हुसैनाबाद घंटा घर की घडी चलने  लगी थी.
ब्रिटिश हुकूमत में घंटा घर में मकेनिकल घडी लगती थी जिनकी प्लेट चीनी की होती थी और नम्बर रोमन में लिखे होते थे,1994 तक पुरे देश में इन घड़ियों की मरम्मत का काम सिर्फ धर्म पाल रहेजा करते थे, वो ही इन घड़ियों (मकेनिकल) के मास्टर थे,साल 2000 में धर्म पाल रहेजा  की मौत हो गयी उनकी मौत के साथ पूरे देश के घंटा घर जिनमें मकेनिकल घड़ियाँ थी  की भी मौत  हो गयी,साल 2004 के बाद इन घड़ियों  की  मरम्मत का जिस कम्पनी को मिला उसने घंटा घर जिंदा तो किये पर मकेनिकल घडी को  क्वार्टज़  में तब्दील कर दिया,अब किसे है  फुर्सत  यह देखने की घडी मकेनिकल है या  क्वार्टज़ ?

सतखंडा


सितम्बर 2011 में लखनऊ जिला  प्रशासन ने तारीखी सतखंडे की नयी फोटो ज़ारी करते हुए दावा किया था की जल्दी  सतखंडे की नयी शक्लो सूरत कुछ ऐसी होगी धीरे धीरे पूरा साल बीत गया पर कोई बदलाव नहीं हुआ,अपने दावे को  लखनऊ जिला  प्रशासन  भूल गया गया,या डर   गया सतखंडा के मिथक से ? कहते हैं सतखंडा बादशाह  नवाब  मुहम्मद अली शाह को रास नहीं आया,इस मिथक पर जब तक अँगरेज़ रहे वो भी चलते रहे,पर मेने  तो सुना है डर के आगे जीत है  जिसने भी सतखंडा छुआ वो गया सितम्बर 2011 में लखनऊ जिला  प्रशासन ने जो योजना बनाई उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका मार्च 2012 में  सरकार बदल गयी सब कुछ बदल गया  
सतखंडा जिसे  ‘Seven stories’ is भी कहा जाता है,हुसैनाबाद में  फ्रेंच  और इटालियन  architecture से इसकी तामीर शुरू हुई,पर सतखंडा  सिर्फ चार मंजिल तक ही पहुँच सका तब अवध के बादशाह  नवाब  मुहम्मद अली शाह का इंतकाल हो गया था 17 May 1842 के दिन, बादशाह के मुहमद  इंतकाल के बाद सतखंडा वीरान हो गया किसी ने भी उधर नहीं देखा  बादशाह  नवाब  मुहम्मद अली शाह के इंतकाल के  15 साल के बाद अवध पर भी अंग्रेजों का कब्ज़ा हो गया था  बादशाह  नवाब  मुहम्मद अली शाह  ने सतखंडा  का तामीर इस लिए करवाया था की की बेगमें चाँद देख सके

Thursday, September 27, 2012

लता "मंगेशकर" बैरियर


भारत रत्न,लता मंगेशकर(जन्म 28 सितंबर 1929 इंदौरदेश की सबसे मशहूर फिमेल प्लेबैक सिंगर,जिन्होंने दशकों से अपने हुनर को कायम रखा है,लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान हिन्दुस्तानी सिनेमा  में फिमेल प्लेबैकसिंगर के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले  के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है। लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप  के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका  ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। लता जी का जन्म मराठा परिवार में हुआ मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में पंडित दीनानाथ मंगेशकर की सबसे बड़ी बेटी के रूप में मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक थे। इनके परिवार से हृदयनाथ मंगेशकर  और बहनें उषा मंगेशकरमीना मंगेशकर और आशा भोसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिये चुना।  लता जी का जन्म इंदौर में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र  में हुई। जब लता सात साल की थीं तब वो महाराष्ट्र आईं। लता ने पाँच साल की उम्र से पिता के साथ एक रंगमंच कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरु कर दिया था.
लता बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं। बचपन में कुंदनलाल सहगल  की  फ़िल्म चंडीदास देखकर उन्होने कहा थी कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेगी। पहली बार लता जी  ने वसंग जोगलेकर  द्वारा निर्देशित  फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये गाया। उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाये इसलिये इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया। लेकिन उसकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित हुये। पिता की मृत्यु के बाद (जब लता जी सिर्फ़ तेरह साल की थीं), लता जी को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु की वज़ह से पैसों के लिये उन्हें कुछ हिन्दी  और मराठी  फ़िल्मों में काम करना पड़ा। अभिनेत्री के रुप में उनकी पहली फ़िल्म पाहिली मंगलागौर (1942) रहीजिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमेंमाझे बाल,चिमुकला संसार (1943),गजभाऊ (1944),बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा(1946), माँद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थीबड़ी माँमें लता ने नूरजहाँ  के साथ अभिनय किया और उसके छोटी बहन की भूमिका निभाई आशा  भोसले नेउसने खुद की भूमिका के लिये गाने भी गाये और आशा के लिये पार्श्वगायन किया.
1945 में उस्ताद ग़ुलाम हैदर  (जिन्होंने पहले नूरजहाँ  की खोज की थीअपनी आनेवाली फ़िल्म के लिये लता जी  को एक निर्माता के स्टूडियो ले गये जिसमे कामिनी कौशल  मुख्य भूमिका निभा रही थीवे चाहते थे कि लता जी  उस फ़िल्म के लिये पार्श्वगायन करे।लेकिन गुलाम हैदर को निराशा हाथ लगी। 1947  में वसंत जोगलेकर ने अपनी फ़िल्म आपकी सेवा में में लता को गाने का मौका दियाइस फ़िल्म के गानों से लता की खूब चर्चा हुई। इसके बाद लता ने मज़बूर फ़िल्म के गानों "अंग्रेजी छोरा चला गयाऔर "दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का  छोड़ा तेरे प्यार नेजैसे गानों से अपनी स्थिती सुदृढ की।हालांकि इसके बावज़ूद लता जी को उस खास हिट की अभी भी तलाश थी। 1949  में लता जी को ऐसा मौका फ़िल्म "महलके "आयेगा आनेवालागीत से मिला। इस गीत को उस वक्त  की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला  पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म कामयाब  रही थी और लता जी  तथा मधुबाला दोनों के लिये बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद लता जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
लता जी को "मंगेशकरबैरियर भी कहा जाता है बहुत सी फिमेल प्लेबैक सिंगर आई और गयी कहते हैं की लता जी ने किसी को भी पनपने नहीं दिया,ऐसे नामों की फेहरिस्त लम्बी है,इतना ही नहीं संगीतकार भी इनसे पंगा नहीं लेते थे.पर अपवाद हर जगह होते हैं,पहला अपवाद हैं लता जी की छोटी बहन आशा भोंसले जिनका कसूर यह था की इन्होने लताजी की मर्जी के खिलाफ गणपतराव भोंसले (31)के साथ शादी कर ली थी,उन दिनों में गणपतराव लता के निजी सचिव थे और तब आशा भोंसले की उम्र महज 16 साल थी,हालाकि कुछ साल के बाद लता जी के इस विरोध को जायज कहा गया जब यह शादी नाकामयाब रही,1960 के आसपास,उस दौर में गीता दत्त,शमशाद बेगम और लता मंगेशकर का दबदबा था जो गाने कोई नहीं गाता था वो आशा ताई को मिलने लगे,आशा और लता जी ने एक साथ कम ही गाने गाये फिल्म दमन 1951 के लिए पहली बार गाया,चोरी चोरी,1956,मिस मैरी, 1957,शारदा 1957,मेरे महबूब में क्या नही मेरे मेहबूब, 1963, काश किसी दीवाने को,आए दिन बहार के, 1966,मैंचली मैं चलीपड़ोसन,1968,के बाद छाप तिलक सब,मैं तुलसी तेरे आंगन की,1978, दोनों की आवाज़ का जादू एक साथ दिखाउत्सव,1984 में मन क्यों बहका के बाद इन दोनों ने फिर एक साथ नहीं गाया,ओपी नैयर दूसरे अपवाद थे जिन्होंने कभी लता जी से काम नहीं लिया,एकलौते संगीतकार थे जिन्होंने "मंगेशकरबैरियर पार किया,1966 में संगीतकार शंकरजयकिशन की जोड़ी टूट गयी थी फिल्म थी सूरज इस फिल्म में शंकर ने शारदा को मौक़ा दिया गाना था "तितली उडी उड़के चली",गाना हिट हुआ,शंकरजयकिशन की जोड़ी टूट गयी कुछ साल के बाद जयकिशन की मौत हो गयी,शारदा को सिर्फ शंकर की फिल्मों में ही गाने के मौके मिले किसी और संगीत कार ने शारदा की तरफ नहीं देखा,शंकर ने कई साल तक शारदा को मौक़ा दिया,निर्माता सोहन लाल कंवर ने शंकर और लता जी में सुलह करवा दी फिल्म थी सन्यासी 1975, उषा मंगेशकरमीना मंगेशकर को भी बहुत कम मौके मिलेकहा तो यह भी जता था की संगीतकार मदन मोहन के लिए और राजकपूर के लिए लता जी ने अपनी आवाज़ में और चार चाँद लगा दिए,1966 तक फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट फिमेल प्लेबैक अवॉर्ड को मंगेशकर अवॉर्ड भी कहा जाता था,क्योंकि हर बार फिमेल प्लेबैक अवॉर्ड सिर्फ लता जी को मिलता था,साल 1967 और 1968 में फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट फिमेल प्लेबैक अवॉर्ड लता जी के नाम नहीं था इसे हासिल किया था आशा भोसले ने साल 1966 की फिल्म दस लाख के लिए संगीतकार थे रवि,गाना था "गरीबों की सुनो " फिल्म शिकार के लिए परदे में रहने दो " संगीतकार थे शंकर (जयकिशन ) इसके बाद 1969 में लता जी ने यह कह कर सबको हैरत में ड़ाल दिया था की इस अवॉर्ड (फ़िल्मफ़ेयरनहीं लेंगी.1969 में 1979 में फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट फिमेल प्लेबैक अवॉर्ड आशा ताई के हिस्से में गया और उन्होंने भी लता दीदी की राह पकड़ ली अनुरोध किया है कि इसके बाद नामांकन के लिए उसके नाम पर विचार नहीं किया जाये.मोहम्मद रफ़ी से भी उनका विवाद हुआ रफ़ी साहब ने एलान कार दिया था की वो उनके साथ (लता जीनहीं गायेंगे.बाद में जय किशन ने दोनों में सुलह करवा दी थी.
"आज
 तकके मुताकिब मोहम्मद रफी के बेटे शाहिद रफी ने लता मंगेशकर  के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी हैउन्होंने लता के इस दावे को खारिज किया है कि रफी ने अपने  उनके (लताबीच विवादों को दूर करने के लिए उन्हें माफी मांगते हुए पत्र भेजा था.लता मंगेशकर के इस दावे के एक दिन बाद कि मरहूम गायक मोहम्मद रफी ने लिखित में उनसे माफी मांगी थीरफी के पुत्र शाहिद रफी ने लता की आलोचना करते हुए इसे ‘लोकप्रियता का हथकंडा’ करार दिया है और कहा है कि वह इस संबंध में लता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं.शाहिद ने कहा, ‘मेरे पिता राष्ट्रीय सम्पदा थेमुझे चोट पहुंची है और उनके प्रशंसकों को भीउनके प्रशंसकों की संख्या किसी अन्य कलाकार के प्रशंसकों से कहीं ज्यादा हैअगर वह यह साबित कर दें कि मेरे पिता ने उन्हें माफी का पत्र लिखा था तो मैं माफी मांगने को तैयार हूं.’उन्होंने कहा, ‘उन्हें पत्र दिखाने दीजिएमेरे पिता का बरसों पहले इंतकाल हो चुका है और अब वह इस पत्र की बात कर रही हैंलोग तो कीमती दस्तावेज को पचासों साल संभालकर रखते हैंउन्होंने उस कागज को संभालकर क्यों नहीं रखाजिससे उनकी इज्जत बढ़ती.’एक अखबार के साथ इंटरव्यू के दौरान लता मंगेशकर के हवाले से कहा गया था कि उनका और रफी का रॉयल्टी को लेकर झगड़ा हुआ थाजब रफी ने कहा था कि वह उनके साथ नहीं गाएंगे और उस वक्त वहां और संगीतकार भी मौजूद थेइसपर लता ने जवाब में कहा था कि वह खुद उनके साथ नहीं गाएंगी.लता ने कहा कि यह मामला संगीत निर्देशक जयकिशन की मदद से सुलझा लिया गया थाअखबार ने लता के हवाले से कहा, ‘मुझे रफी का पत्र मिला और झगड़ा खत्म हो गयालेकिन मैं जब भी उसे देखतीमेरी टीस उभर आती.’शाहिद ने आरोप लगाया कि मंगेशकर ने यह दावा इसलिए किया क्योंकि वह असुरक्षित हैंशाहिद ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह उनका लोकप्रियता हासिल करने का हथकंडा है क्योंकि वह मेरे पिता के इंतकाल के बाद भी उनके इतने सारे प्रशंसकों की वजह से असुरक्षित हैं.’शाहिद ने कहा, ‘मैं आठ दस दिन इंतजार करूंगाइस बारे में मुझे कानूनी राय लेनी होगी.’ उन्होंने कहा कि लता मंगेशकर जैसी वरिष्ठ कलाकार इस तरह के दावे करके युवा पीढ़ी को गलत संदेश दे रही हैं.शाहिद ने कहा, ‘मेरे पिता और उनके बीच यह झगड़ा 1961 से 1967 के बीच हुआ थाउस समय मेरे पिता का कोई सानी नहीं थाशम्मी कपूरधर्मेंन्द्रजीतेन्द्रराजेन्द्र कुमार जैसे अभिनेता चाहते थे कि मेरे पिता उनके लिए गाएंजबकि उस समय सुमन कल्याणपुरहेमलता और मुबारक बेगम जैसी कई अन्य गायिकाएं थींतो हो सकता है कि उस समय उनका करियर डांवाडोल रहा हो.
पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994)
राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 and 1990)
महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 and 1967)
1969 - पद्म भूषण
1974 - दुनिया मे सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड
1989 - दादा साहब फाल्के पुरस्कार
1993 -  फ़िल्मफ़ेयर  लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
1996 - स्क्रीन  लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
1997 - राजीव गान्धी पुरस्कार
1999 - एन.टी.आरपुरस्कार
1999 - पद्म विभूषण
1999 - ज़ी सिने  लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
2000 - आईआईएफलाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
2001 - स्टारडस्ट  लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
2001 - भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न"
2001 - नूरजहाँ पुरस्कार
2001 - महाराष्ट्र भुषण
 पिता दिनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक थे.
उन्होने अपना पहला गाना मराठी फिल्म 'किती हसाल' (कितना हसोगे?) (1942) में गाया था.
लता मंगेशकर को सबसे बडा ब्रेक फिल्म महल से मिलाउनका गाया "आयेगा आने वालासुपर डुपर हिट था.
लता मंगेशकर अब तक 30 से अधिक भाषाओं मे 30000 से अधिक गाने गा चुकी हैं.
लता मंगेशकर ने 1980 के बाद से फ़िल्मो मे गाना कम कर दिया और स्टेज शो पर अधिक ध्यान देने लगी.
लता ही एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं.
लता मंगेशकर ने आनंद गान बैनर तले फ़िल्मो का निर्माण भी किया है और संगीत भी दिया है.
वे हमेशा नंगे पाँव गाना गाती हैं
लता जी ने शादी नहीं की,कई साल पहले कुछ फ़िल्मी मैगज़ीन ने उनका नाम राज सिंह डूंगरपुर से जोड़ा था  (December 19, 1935 – September 12, 2009) was a former president of Board of Control for Cricket in India  .