Wednesday, February 10, 2010

कॉलरा हॉस्पिटल सिर्फ एक नाम भर नहीं है

हुआ तब कुछ नहीं था जब 100 साल पुरानी हज़रतगंज कोतवाली ज़मींदोज़ हो गयी,ना जाने कितने ऐसे संस्मारक हैं,जहाँ कब्जे हैं,अगर एक इमारत और गिर जाती है तो क्या फर्क पडेगा इस शहर की ज़िन्दगी पर.इमारत होती है तोड़ने के लिए,तारे वाली कोठी,कर्नल दिलकुश की कोठी,सिविल सर्जन आफिस,ज़नरल की कोठी,अब इन सब का ज़िर्क किताबों में ही रह गया है,ना जाने कितने कब्रिस्तान,शमशान लील लिए गये,तालाब घोल कर पी गये,नालों और सड़कों पर मकान,दूकान सीना तान कर खड़े हैं "हिम्मत है तो छु कर दिखाओ, वैसे भी बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर की यह छोटी सी बानगी है,गरीब गुरबों को सस्ता इलाज़ वो भी 5 रूपये में इसी शहर में मिलता था,क्योंकी सरकार की तरफ से सब कुछ यहाँ कॉलरा हॉस्पिटल में मुफ्त मिलता था,डेथ टोल ना के बराबर,ना आन्दोलन ना चर्चा,ना रिट हुई,कॉलरा हॉस्पिटल सिर्फ एक नाम भर नहीं है ना जाने कितने लोगों की पनाह गाह रहा,मरीज़ भी खुश तीमारदार भी खुश,शाहजहाँ बाज़ी हो या निगम आंटी इनका नाम ही काफी था यहाँ, दुलारे माली भैया की आवाज़,भंडारी चाचा,राम मिलन,और लामू भैया( रामू ) की आवाजों का अहसास गाना गाते हुए इतवारी,जुगाड़ की तलाश में शमीम भाई,विजय लक्ष्मीजी का हिसाब किताब,और यहाँ पर क्या छोटे बड़े सब कहते थे "संजू भैया " जो आज तक ""संजू भैया " हैं जहाँ में रहता हूँ वहां आज भी लोग "संजोग" को नहीं जानते "संजू भैया " को जानते हैं,( जारी है )

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