लखनऊ के आलम बाग़ का इलाका जो कभी अवध के बादशाह वाजिद अली शाह ने अपनी बेगम "आलम आरा" के लिए बनवाया था, तब इस का नाम का महल आलम बाग़ था.बेगम आलम आरा के नाम पर लखनऊ में एक रेलवे स्टेशन है जिसका नाम है आलम नगर.आलमबाग के चंदर नगर इलाके में आलमबाग महल के कुछ खंडहर अभी मौजूद हैं,मेजर हैवलक की कब्र भी यहाँ मौजूद है, आलमबाग महल को मिटा कर 1947 के बाद रिफ्यूजी कालोनी बसाई गयी जिसे "चंदर नगर का नाम मिला, आलमबागमहल में दाखिल होने के लिए सदर दरवाज़ा था जिसे 1857 के बाद "फांसी दरवाज़ा" कहा जाने लगा,1857 की जंगे आजादी में अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा मोर्चा यहाँ खोला गया और बामुश्किल अंग्रेज़ी फौज महल पर कब्ज़ा कर सकी तब अंग्रेज़ी फौज के ज़नरल "औरटम"व मेजर हैवलक ने यहाँ ना जाने कितने क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकवा दियाथा,दरअसल इस महल के सदर दरवाज़े की बनावट कुछ ऐसी थी की भारतीय सैनिक यहाँ बने कमरों में रह कर दरवाज़े की दीवारों पर बने सुराखों से दुश्मन पर नज़र रखते थे और दुश्मन पर गोलियां भी चलाते थे.आज शाही दरवाज़े\फांसी दरवाज़े का नाम है "चंदर नगर गेट" और आज यहाँ मौजूद है बिरयानी की दुकान है,सब्जी मंडी,प्लास्टिक का सामान बेचने वाले, पी.सी.ओ.ऐ.टी.एम सभी कुछ है यहाँ.
महल आलम बाग़ के इस दरवाज़े की तामीर हुई 1847 से 1857 के बीच में.इस दरवाज़े की नाप है 17X13 मीटर दरवाज़े बीच में आने जाने के लिए 3X5 मीटर चौड़ी खुली जगह भी है और कुल उंचाई है करीब 11 मीटर,सुन्दर मेहराबों,शाखों,के साथ दो मछलियाँ भी बनी है, दरवाज़े को बंद करने के देवदार की लकड़ी के सुन्दर पल्ले बनाये गये थे अब दो के बजाये एक ही पल्ला यहाँ मौजूद हैं,चार मेहराबों पर बनी इस दरवाज़े की छत धन्नीयों पर टिकी है उपर जाने के लिए दोनों तरफ ज़ीने है जहाँ सिपाहियों के लिए कमरे बनाए गये थे, दरवाज़े में कई सुराख़ है यह सुराख़ थे दुश्मनों पर निगाह रखने के लिए.
इतिहास के पन्नों में शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े के नाम से इस जगह को जाना जाता है ना की चंदर नगर गेट के नाम से, 1947 के बाद चंदर नगर के नाम से कालोनी बनी और गेट का नाम भी बदल दिया गया मेजर हैवलक की कब्र की रक्षा आज भी राज्य पुरात्व विभाग कर रहा है जो इसी इलाके में है, मेजर हैवलक के नाम पर रोड भी थी लखनऊ में जिसका नाम बदला जा चुका है उसे अब सरोजनी नायडू मार्ग के नाम से जाना जाता है.उधर आलमबाग़ महल के इस एतहासिक धरोहर की रक्षा करना तो दूर इस नाम ही बदल डाला.
महल आलम बाग़ के इस दरवाज़े की तामीर हुई 1847 से 1857 के बीच में.इस दरवाज़े की नाप है 17X13 मीटर दरवाज़े बीच में आने जाने के लिए 3X5 मीटर चौड़ी खुली जगह भी है और कुल उंचाई है करीब 11 मीटर,सुन्दर मेहराबों,शाखों,के साथ दो मछलियाँ भी बनी है, दरवाज़े को बंद करने के देवदार की लकड़ी के सुन्दर पल्ले बनाये गये थे अब दो के बजाये एक ही पल्ला यहाँ मौजूद हैं,चार मेहराबों पर बनी इस दरवाज़े की छत धन्नीयों पर टिकी है उपर जाने के लिए दोनों तरफ ज़ीने है जहाँ सिपाहियों के लिए कमरे बनाए गये थे, दरवाज़े में कई सुराख़ है यह सुराख़ थे दुश्मनों पर निगाह रखने के लिए.
इतिहास के पन्नों में शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े के नाम से इस जगह को जाना जाता है ना की चंदर नगर गेट के नाम से, 1947 के बाद चंदर नगर के नाम से कालोनी बनी और गेट का नाम भी बदल दिया गया मेजर हैवलक की कब्र की रक्षा आज भी राज्य पुरात्व विभाग कर रहा है जो इसी इलाके में है, मेजर हैवलक के नाम पर रोड भी थी लखनऊ में जिसका नाम बदला जा चुका है उसे अब सरोजनी नायडू मार्ग के नाम से जाना जाता है.उधर आलमबाग़ महल के इस एतहासिक धरोहर की रक्षा करना तो दूर इस नाम ही बदल डाला.
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