अवध की गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल को लखनऊ में सालों साल जिंदा रखा गया,नवाबों और बेगमों ने मंदिर तामीर करवाए तो राजाओं ने मस्जिदों और इमाम बाड़ों की तामीर करवाई,इतिहास के पन्ने पलटने पर अवध की तारीख में महाराजाधिराज टिकेत राय के नाम का ज़िर्क किये बिना यह सफरनामा अधूरा रहेगा.
महाराजाधिराज टिकेत राय ने उस वक़्त के भदेवां नाम के जंगल में एक तालाब की तामीर करवाई आज इस जगह को राजा जी पुरम के नाम से जाना जाता है,और तालाबों की तरह वक़्त के साथ यह भी सूख गया,सवारने के नाम पर एन.D,ऐ. की सरकार के वक़्त लखनऊ के तब के सांसद और प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने यहाँ मुज़िकल फौनटेंन की शुरूआत कर दी,कुछ साल तक तो यहाँ सब कुछ ठीक ठाक रहा,फिर सब कुछ धीरे २ गायब. ......खैर....... टिकेत राय जी ने एक मस्जिद की तामीर करवाई जो पुराने शहर के हैदर गंज में आज भी कायम है,टिकेत राय जी के नाम पर ओल्ड टिकेत गंज नाम का मोहल्ला और एक कालोनी भी है.महाराजा टिकेत राय अवध में प्रधान मंत्री हुआ करते थे,जो अवध के बादशाहों की तरह ही कला प्रेमी और भवन निर्माण में बेहद रूचि रखते थे,लखनऊ -हरदोई रोड रहमान खेडा के नजदीक बहेटा नदी पर एक पुल और शिव मंदिर की तामीर करवाई .तब यहाँ बना पुल लखनऊ और मलिहाबाद को जोड़ता था,संवत 1848 में बनी यह धरोहर आज उपेक्षा का शिकार हैं.१९२० के आसपास ऐ.एस.आई. ने पुल और मंदिर दोनों को संरक्षित कर लिया.
इंडो-इरानी कला पुल और मंदिर दोनों में मौजूद है,विशाल गेट दोनों तरफ बेहतरीन नक्काशी किये हुए ,खूबसूरत मेहराब से तराशा हुआ ,रख रखाव के बगैर पुल और शिव मंदिर अपना पुराना वुजूद खोते जा रहे हैं.
नदी के किनारे बना शिव मंदिर अपने वातु कला के कारण देखते ही बनता है.महा शिव रात्री पर स्थानीय लोग शिव मंदिर में जा कर पूजा अर्चना करने की रस्म जरुर निभा लेतें है .
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पुल और मंदिर दोनों को संरक्षित कर लिया और फाइलों में दर्ज कर भूल गया इस शिव मंदिर की और जल्द ही ध्यान नहीं दिया गया तो यह धरोहर अपना वुजूद खो बैठेगी.
( जागो बजरंगियों जागो )
एस.एस.न्यूज़
Tuesday, October 19, 2010
Monday, October 18, 2010
क्या मायावती उत्तर प्रदेश की सियासत में इतिहास रच देंगी ?
क्या मायावती उत्तर प्रदेश की सियासत में इतिहास रच देंगी ?
13 मई 2007 को सुश्री मायावती ने उत्तरप्रदेश की चौथी बार बागडोर संभाली थी,सुश्री मायावती अपने एक रिकार्ड अपने नाम कर चुकीं हैं और वो है, चौथी मुख्य मंत्री बनने का,उत्तर प्रदेश में अब तक किसी को 4 बार सी.एम् बनने का,किसी को भी यह मौक़ा नहीं मिला है, दूसरा रिकार्ड भी वो अपने अपने नाम कर चुकी है जो अब तक श्री मुलायम सिंह यादव के नाम था जिन्होंने जिन्होंने 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 मुख्य मंत्री की कुर्सी सभाली थी अब यह रिकार्ड सूबे में सबसे ज्यादा दिन मुख्य मंत्री रहने का जो सुश्री मायावती के नाम हो गया है,अब है एक और रिकार्ड अपने नाम कर क्या सुश्री मायावती उत्तर प्रदेश की सियासत में इतिहास रच देंगी ? और वो है 5 साल तक उत्तर प्रदेश में सी.एम्.बने रहने का जो आज तक किसी के नाम नहीं है, 1377 से लेकर आज तक कोई भी मुख्य मंत्री 5 साल तक राज नहीं कर सका.
क्या सुश्री मायावती उत्तर प्रदेश के इस मिथक को तोड़ने में कामयाब होंगी ?
उत्तर प्रदेश के अब तक के मुख्य मंत्री
Name Took Office Left Office Political Party
1 नवाब सर मुहम्मद अहमद सय्यद खान 3 Apr १९३७ 16 Jul 1937 Independent
2 गोविन्द बल्लभ पन्त 17 Jul 1937 2 Nov 1939 Indian National Congress
1 Apr 1946 25 Jan 1950
26 Jan 1950 20 May 1952
20 May 1952 27 Dec 1954
3 संपूर्णानंद 28 Dec १९५४ 9 Apr 1957 Indian National Congress
10 Apr 1957 6 Dec 1960
4 चन्द्र भानु गुप्ता 7 Dec 1960 14 Apr 1962 Indian National Congress
14 Apr १९६२ 1 Oct 1963
5 सुचेता कृपलानी 2 Oct 1963 13 Mar 1967 Indian National Congress
6 चन्द्र भानु गुप्ता [2] 14 Mar 1967 2 Apr 1967 Indian National Congress
7 चरण सिंह 3 Apr १९६७ 25 Feb 1968 Bharatiya Lok Dal
8 चन्द्र भानु गुप्ता [3] 26 Feb 1969 17 Feb 1970 Indian National Congress
9 चरण सिंह [2] 18 Feb 1970 1 Oct १९७० Bharatiya Lok Dal
President's Rule 2 Oct 1970 18 Oct 1970
10 त्रिभुवन नारायनं सिंह 18 Oct 1970 3 Apr 1971 Indian National Congress
11 कमलापति त्रिपाठी 4 Apr 1971 12 Jun १९७३ Indian National Congress
President's Rule 12 Jun 1973 8 Nov 1973
12 हेमवती नंदन बहुगुणा 8 Nov १९७३ 4 Apr १९७४ Indian National Congress
5 Apr 1974 29 Nov 1975
President's Rule 30 Nov 1975 21 Jan 1976
13 नारायण दत्त तिवारी 21 Jan 1976 30 Apr 1977 Indian National Congress
President's Rule 30 Apr 1977 23 Jun 1977
14 राम नरेश यादव 23 Jun १९७७ 27 Feb 1979 Janata Party
15 बनारसी दास 28 Feb १९७९ 17 Feb 1980 Janata Party
President's Rule 17 Feb 1980 9 Jun 1980
16 विश्वनाथ प्रताप सिंह 9 Jun 1980 18 Jul 1982 Indian National Congress
17 श्रीपति मिश्र 19 Jul १९८२ 2 Aug 1984 Indian National Congress
18 नारायण दत्त तिवारी [2] 3 Aug 1984 10 Mar १९८५ Indian National Congress
11 Mar 1985 24 Sep 1985
19 वीर बहादुर सिंह 24 Sep 1985 24 Jun 1988 Indian National Congress
20 नारायण दत्त तिवारी [3] 25 Jun 1988 5 Dec 1989 Indian National Congress
21 मुलायम सिंह यादव 5 Dec 1989 24 Jun 1991 Janata Dal
22 कलायान्न सिंह 24 Jun 1991 6 Dec 1992 Bharatiya Janata Party
President's Rule 6 Dec 1992 4 Dec 1993
23 मुलायम सिंह यादव [2] 4 Dec 1993 3 Jun 1995 Samajwadi Party
24 मायावती 3 Jun 1995 18 Oct 1995 Bahujan Samaj Party
President's Rule 18 Oct 1995 21 Mar 1997
25 मायावती [2] 21 Mar 1997 21 Sep 1997 Bahujan Samaj Party
26 कल्याण सिंह [2] 21 Sep 1997 21 Feb 1998 Bharatiya Janata Party
# जगदम्बिका Pal 21 Feb 1998 23 Feb 1998 Indian National Congress
27 कल्याण सिंह [3] 12 Nov १९९९ Bharatiya Janata Party
28 राम प्रकाश गुप्ता 12 Nov 1999 28 Oct 2000 Bharatiya Janata Party
29 राजनाथ सिंह 28 Oct २००० 8 Mar 2002 Bharatiya Janata Party
President's Rule 8 Mar 2002 3 May 2002
30 मायावती [3] 3 May 2002 29 Aug 2003 Bahujan Samaj Party
31 मुलायम सिंह यादव [3] 29 Aug 2003 13 May 2007 Samajwadi Party
32 मायावती [4] 13 May 2007 TILL NOW Bahujan Samaj Party
# Jagdambika Pal's position as CM is highly questioned.[1] UP Legislative assembly website does not includes him in List of Chief Ministers.[2]
13 मई 2007 को सुश्री मायावती ने उत्तरप्रदेश की चौथी बार बागडोर संभाली थी,सुश्री मायावती अपने एक रिकार्ड अपने नाम कर चुकीं हैं और वो है, चौथी मुख्य मंत्री बनने का,उत्तर प्रदेश में अब तक किसी को 4 बार सी.एम् बनने का,किसी को भी यह मौक़ा नहीं मिला है, दूसरा रिकार्ड भी वो अपने अपने नाम कर चुकी है जो अब तक श्री मुलायम सिंह यादव के नाम था जिन्होंने जिन्होंने 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 मुख्य मंत्री की कुर्सी सभाली थी अब यह रिकार्ड सूबे में सबसे ज्यादा दिन मुख्य मंत्री रहने का जो सुश्री मायावती के नाम हो गया है,अब है एक और रिकार्ड अपने नाम कर क्या सुश्री मायावती उत्तर प्रदेश की सियासत में इतिहास रच देंगी ? और वो है 5 साल तक उत्तर प्रदेश में सी.एम्.बने रहने का जो आज तक किसी के नाम नहीं है, 1377 से लेकर आज तक कोई भी मुख्य मंत्री 5 साल तक राज नहीं कर सका.
क्या सुश्री मायावती उत्तर प्रदेश के इस मिथक को तोड़ने में कामयाब होंगी ?
उत्तर प्रदेश के अब तक के मुख्य मंत्री
Name Took Office Left Office Political Party
1 नवाब सर मुहम्मद अहमद सय्यद खान 3 Apr १९३७ 16 Jul 1937 Independent
2 गोविन्द बल्लभ पन्त 17 Jul 1937 2 Nov 1939 Indian National Congress
1 Apr 1946 25 Jan 1950
26 Jan 1950 20 May 1952
20 May 1952 27 Dec 1954
3 संपूर्णानंद 28 Dec १९५४ 9 Apr 1957 Indian National Congress
10 Apr 1957 6 Dec 1960
4 चन्द्र भानु गुप्ता 7 Dec 1960 14 Apr 1962 Indian National Congress
14 Apr १९६२ 1 Oct 1963
5 सुचेता कृपलानी 2 Oct 1963 13 Mar 1967 Indian National Congress
6 चन्द्र भानु गुप्ता [2] 14 Mar 1967 2 Apr 1967 Indian National Congress
7 चरण सिंह 3 Apr १९६७ 25 Feb 1968 Bharatiya Lok Dal
8 चन्द्र भानु गुप्ता [3] 26 Feb 1969 17 Feb 1970 Indian National Congress
9 चरण सिंह [2] 18 Feb 1970 1 Oct १९७० Bharatiya Lok Dal
President's Rule 2 Oct 1970 18 Oct 1970
10 त्रिभुवन नारायनं सिंह 18 Oct 1970 3 Apr 1971 Indian National Congress
11 कमलापति त्रिपाठी 4 Apr 1971 12 Jun १९७३ Indian National Congress
President's Rule 12 Jun 1973 8 Nov 1973
12 हेमवती नंदन बहुगुणा 8 Nov १९७३ 4 Apr १९७४ Indian National Congress
5 Apr 1974 29 Nov 1975
President's Rule 30 Nov 1975 21 Jan 1976
13 नारायण दत्त तिवारी 21 Jan 1976 30 Apr 1977 Indian National Congress
President's Rule 30 Apr 1977 23 Jun 1977
14 राम नरेश यादव 23 Jun १९७७ 27 Feb 1979 Janata Party
15 बनारसी दास 28 Feb १९७९ 17 Feb 1980 Janata Party
President's Rule 17 Feb 1980 9 Jun 1980
16 विश्वनाथ प्रताप सिंह 9 Jun 1980 18 Jul 1982 Indian National Congress
17 श्रीपति मिश्र 19 Jul १९८२ 2 Aug 1984 Indian National Congress
18 नारायण दत्त तिवारी [2] 3 Aug 1984 10 Mar १९८५ Indian National Congress
11 Mar 1985 24 Sep 1985
19 वीर बहादुर सिंह 24 Sep 1985 24 Jun 1988 Indian National Congress
20 नारायण दत्त तिवारी [3] 25 Jun 1988 5 Dec 1989 Indian National Congress
21 मुलायम सिंह यादव 5 Dec 1989 24 Jun 1991 Janata Dal
22 कलायान्न सिंह 24 Jun 1991 6 Dec 1992 Bharatiya Janata Party
President's Rule 6 Dec 1992 4 Dec 1993
23 मुलायम सिंह यादव [2] 4 Dec 1993 3 Jun 1995 Samajwadi Party
24 मायावती 3 Jun 1995 18 Oct 1995 Bahujan Samaj Party
President's Rule 18 Oct 1995 21 Mar 1997
25 मायावती [2] 21 Mar 1997 21 Sep 1997 Bahujan Samaj Party
26 कल्याण सिंह [2] 21 Sep 1997 21 Feb 1998 Bharatiya Janata Party
# जगदम्बिका Pal 21 Feb 1998 23 Feb 1998 Indian National Congress
27 कल्याण सिंह [3] 12 Nov १९९९ Bharatiya Janata Party
28 राम प्रकाश गुप्ता 12 Nov 1999 28 Oct 2000 Bharatiya Janata Party
29 राजनाथ सिंह 28 Oct २००० 8 Mar 2002 Bharatiya Janata Party
President's Rule 8 Mar 2002 3 May 2002
30 मायावती [3] 3 May 2002 29 Aug 2003 Bahujan Samaj Party
31 मुलायम सिंह यादव [3] 29 Aug 2003 13 May 2007 Samajwadi Party
32 मायावती [4] 13 May 2007 TILL NOW Bahujan Samaj Party
# Jagdambika Pal's position as CM is highly questioned.[1] UP Legislative assembly website does not includes him in List of Chief Ministers.[2]
Wednesday, October 13, 2010
...........फांसी दरवाज़ा.........
लखनऊ के आलम बाग़ का इलाका जो कभी अवध के बादशाह वाजिद अली शाह ने अपनी बेगम "आलम आरा" के लिए बनवाया था,और तब इस का नाम का महल आलम बाग़ था.ज़ाहिर सी बात है महल में दाखिल होने के लिए सदर दरवाज़े या गेट से होकर गुज़रना पड़ता था
,तो आलम बाग़ में ये गेट खोजते हैं ....... नहीं मिला न .....
चलिए शाही दरवाज़ा ही मिल जाए....... वो भी नहीं मिला अब क्या करें ?
फांसी दरवाज़ा यह भी नहीं ......
तो फिर अरे भाई आप गलत पता पूछ रहें हैं यह रहा चंदर नगर गेट कहाँ आप पुराने दौर की बात कर रहें हैं,बिरयानी की दुकान है,सब्जी मंडी मौजूद है,प्लास्टिक का सामान पी.सी.ओ.ऐ.टी.एम सभी कुछ है यहाँ.
महल आलम बाग़ के इस दरवाज़े की तामीर हुई 1847 से 1857 के बीच में.इस दरवाज़े की नाप है 17X13 मीटर दरवाज़े बीच में आने जाने के लिए 3X5 मीटर चौड़ी खुली जगह भी है और कुल उंचाई है करीब 11 मीटर,सुन्दर मेहराबों,शाखों,के साथ दो मछलियाँ भी बनी है, दरवाज़े को बंद करने के देवदार की लकड़ी के सुन्दर पल्ले बनाये गये थे अब दो के बजाये एक ही पल्ला यहाँ मौजूद हैं,4 मेहराबों पर बनी इस दरवाज़े की छत धन्नीयों पर टिकी है उपर जाने के लिए दोनों तरफ ज़ीने है जहाँ सिपाहियों के लिए कमरे बनाए गये थे, दरवाज़े में कई सुराख़ है यह सुराख़ थे दुश्मनों पर निगाह रखने के लिए.
1857 जंगे आजादी अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा मोर्चा यहाँ खोला गया और अंग्रेज़ी फौज के ज़नरल "औरटम"व मेजर हैव्लेक ने यहाँ ना जाने कितने क्रांतीवीरों को फांसी पर लटकवा दिया इतिहास में शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े के नाम से इस जगह को जाना जाता है ना की चंदर नगर गेट के नाम से, 1950 के बाद चंदर नगर के नाम से एक कालोनी बनी और गेट का नाम भी बदल दिया गया मेजर हैव्लेक की कब्र की रक्षा आज भी ऐ.एस.आई. कर रही है जो चंदर नगर में ही है और इतिहासिक शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े की रक्षा उसका नाम और वजूद बदल कर हो रही है
......... जारी है...................
,तो आलम बाग़ में ये गेट खोजते हैं ....... नहीं मिला न .....
चलिए शाही दरवाज़ा ही मिल जाए....... वो भी नहीं मिला अब क्या करें ?
फांसी दरवाज़ा यह भी नहीं ......
तो फिर अरे भाई आप गलत पता पूछ रहें हैं यह रहा चंदर नगर गेट कहाँ आप पुराने दौर की बात कर रहें हैं,बिरयानी की दुकान है,सब्जी मंडी मौजूद है,प्लास्टिक का सामान पी.सी.ओ.ऐ.टी.एम सभी कुछ है यहाँ.
महल आलम बाग़ के इस दरवाज़े की तामीर हुई 1847 से 1857 के बीच में.इस दरवाज़े की नाप है 17X13 मीटर दरवाज़े बीच में आने जाने के लिए 3X5 मीटर चौड़ी खुली जगह भी है और कुल उंचाई है करीब 11 मीटर,सुन्दर मेहराबों,शाखों,के साथ दो मछलियाँ भी बनी है, दरवाज़े को बंद करने के देवदार की लकड़ी के सुन्दर पल्ले बनाये गये थे अब दो के बजाये एक ही पल्ला यहाँ मौजूद हैं,4 मेहराबों पर बनी इस दरवाज़े की छत धन्नीयों पर टिकी है उपर जाने के लिए दोनों तरफ ज़ीने है जहाँ सिपाहियों के लिए कमरे बनाए गये थे, दरवाज़े में कई सुराख़ है यह सुराख़ थे दुश्मनों पर निगाह रखने के लिए.
1857 जंगे आजादी अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा मोर्चा यहाँ खोला गया और अंग्रेज़ी फौज के ज़नरल "औरटम"व मेजर हैव्लेक ने यहाँ ना जाने कितने क्रांतीवीरों को फांसी पर लटकवा दिया इतिहास में शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े के नाम से इस जगह को जाना जाता है ना की चंदर नगर गेट के नाम से, 1950 के बाद चंदर नगर के नाम से एक कालोनी बनी और गेट का नाम भी बदल दिया गया मेजर हैव्लेक की कब्र की रक्षा आज भी ऐ.एस.आई. कर रही है जो चंदर नगर में ही है और इतिहासिक शाही दरवाज़ा या फांसी दरवाज़े की रक्षा उसका नाम और वजूद बदल कर हो रही है
......... जारी है...................
.................रूमी गेट.....................
में हूँ रूमी गेट मेरी तामीर नवाब आसिफुद्दौला मिर्ज़ा मोहम्द्द याहिया खान ने जो सन 1775 ईस्वी से 1797 ईस्वी तक अवध के ताजदार थे ने करवाया था,ब़डा इमामबाड़ा, नौबत खाना,शाही वाबली,आसिफी मस्जिद और भूलभुलैया यह सब मेरे ही सामने बने. नवाब आसिफुद्दौला ने ईरान में बने ऐसे ही गेट के तर्ज़ पर मुझे तामीर किये जाने का फरमान हाफिज़ किफ़ायत उल्लाह के नाम जारी कर दिया,लखोरी इंटों के साथ चूने का प्लास्टर मुझ पर किया गया,मेरी वास्तु कला में हिन्दू मुस्लिम दोनों कलाओं का संगम है,सुंदर,मेहराबों और गुलदस्तों की कड़ीयों से मुझे सजाया गया है.
मेने इतिहास को बनते देखा है मच्छी भवन किला मेरी आखों के सामने तोड़ा गया मच्छी भवन कब्रिस्तान आज़ मी है मुझे याद है वो ज़माना जब गल्ला रुपये का आठ सेर बिकता था तब रूमी दरवाज़े यानि मेरे साये में बाज़ार हुआ करती थी तब व्यापारी
सब हिन्दू थे जब वो दुकानें रवोलते थे तो नवाब आसिफुद्दौला का नाम लेते थे.
मुझे याद है ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौजें ने आलमबाग फ़तेह कर ने के बाद शाही दरवाज़े पर जाने कितने क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था.
आलमबाग, आलमनगर, धनिया मेहरी का पुल, मूसाबाग होकर मेरे सामने से निकला था अंग्रेजों का लश्कर और उनका निशाना था शाह नज़फ़ इमामबाड़ा - जहाँ क्रांतिकारियों ने ज़बरदस्त मोर्चा लगाया था.शाह नज़फ़ फ़तेह हुआ सिकंदरबाग़ पर जंग हुई सिकंदरबाग़ भी फ़तेह हुआ फिर चनों की बाज़ार जिसे तब चनों का हाट कहा जाता था यानि आज का चिनहट में भी ईस्ट इंडिया कम्पनी की फोज जीत गयी.
1857 से लेकर 1887 तक अंग्रेजों ने मुझ पर अपना कब्ज़ा बनाए रखा,और 15 अगस्त 1947 को बटवारें के बाद भारत को आज़ादी मिली बटवारें का गम आज़ादी की खुशी,और अब तक मेरे जिम्मेदारी हुसेनाबाद एलाइड ट्रस्ट को सौप दी गयी और ऐ.एस.आई को रख रखाव की.
पर यह न थी मेरी किस्मत, मेरी हिफाज़त के इंतज़ाम सिर्फ और सिर्फ कागजों पर होता रहा,और मुझे कुछ साल शराबियों,गांजा पीने वालों के सात गुजरने पड़े,पर वो साल कितना अच्छा था जब पर्यटन विभाग ने 60 लाख रूपये खर्च कर डाले और नीचे से लेकार उपर तक रोशनी कर डाली,मुझे याद है वो दौर जब यहाँ बंजर जमीन ,टीले हुआ करते थे और मकानात के नाम पर कुछ कच्चे घर और झोपड़ियाँ हुआ करती थी और तब देखते ही देखते यहिया गंज,फ़तेहगंज,वजीरगंज,रकाबगंज,मोलवीगंज,दौलतगंज,तिकेतगंज,अलीगंज,हुसैनगंज,हसनगंज,मुंशीगंज,लाहोर गंज,भवानीगंज,निवाज गंज गोलागंज ,चारबाग,ऐशबाग,बाद्शाहबाग यह सब मेरे ही सामने बने.
जिस लखनऊ को मेने बनते देखा था उसी लखनऊ के कुछ लोगों से मेरी यह खुशी नहीं देखी गयी,लोग आते थे मुझे देखने के बहाने और लाईट और तार खोल कर ले जाने लगे और एक दिन फिर में डूब गया अन्धेरें में और इसी साल मेरे सीने पर ताला जड दिया गया साल 2002 में प्रदूषण का असर मुझ पर हो गया था,मुझमे दरारे पड़नी शुरू हो गयी थी,तब हुक्मरानों ने तय किया की भारी वाहन यहाँ से होकर नहीं गुजरेंगे कुछ दिन तो इस फरमान परअमल हुआ फिर भूल गये .... और अब साल 2010 में कुछ लोगों को आठ साल पुरानी दरारे दिख रखी हैं तो बताइये क्या कुछ करेंगे आप मेरे लिए ?
.......... (जारी है )
मेने इतिहास को बनते देखा है मच्छी भवन किला मेरी आखों के सामने तोड़ा गया मच्छी भवन कब्रिस्तान आज़ मी है मुझे याद है वो ज़माना जब गल्ला रुपये का आठ सेर बिकता था तब रूमी दरवाज़े यानि मेरे साये में बाज़ार हुआ करती थी तब व्यापारी
सब हिन्दू थे जब वो दुकानें रवोलते थे तो नवाब आसिफुद्दौला का नाम लेते थे.
मुझे याद है ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौजें ने आलमबाग फ़तेह कर ने के बाद शाही दरवाज़े पर जाने कितने क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था.
आलमबाग, आलमनगर, धनिया मेहरी का पुल, मूसाबाग होकर मेरे सामने से निकला था अंग्रेजों का लश्कर और उनका निशाना था शाह नज़फ़ इमामबाड़ा - जहाँ क्रांतिकारियों ने ज़बरदस्त मोर्चा लगाया था.शाह नज़फ़ फ़तेह हुआ सिकंदरबाग़ पर जंग हुई सिकंदरबाग़ भी फ़तेह हुआ फिर चनों की बाज़ार जिसे तब चनों का हाट कहा जाता था यानि आज का चिनहट में भी ईस्ट इंडिया कम्पनी की फोज जीत गयी.
1857 से लेकर 1887 तक अंग्रेजों ने मुझ पर अपना कब्ज़ा बनाए रखा,और 15 अगस्त 1947 को बटवारें के बाद भारत को आज़ादी मिली बटवारें का गम आज़ादी की खुशी,और अब तक मेरे जिम्मेदारी हुसेनाबाद एलाइड ट्रस्ट को सौप दी गयी और ऐ.एस.आई को रख रखाव की.
पर यह न थी मेरी किस्मत, मेरी हिफाज़त के इंतज़ाम सिर्फ और सिर्फ कागजों पर होता रहा,और मुझे कुछ साल शराबियों,गांजा पीने वालों के सात गुजरने पड़े,पर वो साल कितना अच्छा था जब पर्यटन विभाग ने 60 लाख रूपये खर्च कर डाले और नीचे से लेकार उपर तक रोशनी कर डाली,मुझे याद है वो दौर जब यहाँ बंजर जमीन ,टीले हुआ करते थे और मकानात के नाम पर कुछ कच्चे घर और झोपड़ियाँ हुआ करती थी और तब देखते ही देखते यहिया गंज,फ़तेहगंज,वजीरगंज,रकाबगंज,मोलवीगंज,दौलतगंज,तिकेतगंज,अलीगंज,हुसैनगंज,हसनगंज,मुंशीगंज,लाहोर गंज,भवानीगंज,निवाज गंज गोलागंज ,चारबाग,ऐशबाग,बाद्शाहबाग यह सब मेरे ही सामने बने.
जिस लखनऊ को मेने बनते देखा था उसी लखनऊ के कुछ लोगों से मेरी यह खुशी नहीं देखी गयी,लोग आते थे मुझे देखने के बहाने और लाईट और तार खोल कर ले जाने लगे और एक दिन फिर में डूब गया अन्धेरें में और इसी साल मेरे सीने पर ताला जड दिया गया साल 2002 में प्रदूषण का असर मुझ पर हो गया था,मुझमे दरारे पड़नी शुरू हो गयी थी,तब हुक्मरानों ने तय किया की भारी वाहन यहाँ से होकर नहीं गुजरेंगे कुछ दिन तो इस फरमान परअमल हुआ फिर भूल गये .... और अब साल 2010 में कुछ लोगों को आठ साल पुरानी दरारे दिख रखी हैं तो बताइये क्या कुछ करेंगे आप मेरे लिए ?
.......... (जारी है )
Thursday, March 11, 2010
"मयंक"
"देवा" की मौत भी हेड इन्ज़री की वजह से हुई थी और "मयंक" की भी,"मयंक" से कई साल पहले तब मुलाक़ात हुई थी जब वो ऍफ़.एस.एन.में काम कर रहे थे,कुछ महीनों के बाद वे प्रिंट में स्टिल फोटोग्राफर काम करने लगे और कड़े संघर्ष के बाद अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे,अपनी बच्ची के एडमिशन के लिए जब भी मुलाकात होती थी बात करते थे,"मयंक" की माताजी का देहांत 2009 में हुआ और पिताजी की भी तबियत ख़राब है यह दूसरा एक्सीडेंट था,कई दिन कोमा में रहे फिर वो अपने कई साथीयों को वो गम दे गये जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी,अलविदा दोस्त." है अपना दिल तो आवारा " यह अब सुनने को नहीं मिलेगा."मयंक"के परिवार को भगवान् यह गम सहन करने की शक्ती प्रदान करे
Wednesday, March 10, 2010
लोकल न्यूज़
एम् 7,1000.3000,3500.वी.एच.एस.पर शूट होता था,फिर एडिटिंग और वी.सी. आर.से कोपी,जब केबिल पर टेलीकास्ट हुआ तो ट्रेकिग आउट हो गयी.फिर CD और DVD का इस्तेमाल होने लगा वी.एच.एस.कैमरे कहीं पीछे छूट गये, आधे घंटे के बुलेटिन बदल गये,लोकल न्यूज़ का दबदबा भी खत्म हो गया,जो नियम क़ानून बने थे वो भी खत्म हो गये,साल 2002 में लखनऊ में नियम क़ानून बने थे जिनका पालन 30 जून 2004 तक होता रहा,तब की सरकार के फारमान के खिलाफ माथुरा और आगरा से हाई कोर्ट में रिट हुई.और उन्हें स्टे मिल गया लखनऊ से कोर्ट में गया और १९ महीने की लम्बी लड़ाई के बाद "एस.एस..न्यूज़" को भी स्टे मिल गया 14 फरवरी 07 को मेने लोकल न्यूज़ से खुद को दूर कर लिया.अब रीजनल और नेशनल चैनल,DTH लोकल न्यूज़ के सामने बाकी कसर खुद लोकल न्यूज़ चलाने वालों ने पूरी कर दी,लोकल न्यूज़ का गोल्डेन वक्त २००७ तक रहा अब इन लोकल न्यूज़ को कौन देखता है ? और यह कहाँ चलती है ? हाँ 1-2, लोकल न्यूज़ आज भी कुछ बेहेतर कर रही हैं (और है)
Monday, March 1, 2010
HOLI
होली आयी भी और चली भी गयी रंगों के साथ न जाने कितने दर्द दे गयी एक बार फिर होली पर "शराब" की वजह से ना जाने कितने लोग मौत का शिकार हो गये,कुछ बने कच्ची शराब का निशाना और कुछ ने सडक हादसों में अपनी जान गवा दी,आखिर कब तक यह सिलसिला जारी रहेगा ?
Wednesday, February 17, 2010
अपील बदायूं मिशन ब्योस स्कूल बिकने के कगार पर
बदायूं में तहसील गेट के सामने बदायूं मिशन ब्योस स्कूल है जो बिकने के कगार पर अपना यह स्कूल भू माफियाओं की पहली पसंद रहा है.क्योँ की अब यह सम्पति शहर के बीच में और अब यहाँ मार्केट काम्प्लेक्स बनाइये जाने की योजना है, लिहाज़ा मिशन स्कूल बदायूं से ताल्लुक रखने वाले सभी ओल्ड स्टुडेंट सामने आयें और इस स्कूल को बिकने से बचाएं,इस मामले में माननीय उच्चतम न्यालय में रिट की जा रही है,आप दुनिया के किसी भी कोने में हों,पर मिशन स्कूल को सेव करने में मदद करें
थैंक्स
संजोग वाल्टर ओल्ड स्टुडेंट मिशन स्कूल बदायूं
94157 68680,9936826720
sanjogwalter@gmail.com
थैंक्स
संजोग वाल्टर ओल्ड स्टुडेंट मिशन स्कूल बदायूं
94157 68680,9936826720
sanjogwalter@gmail.com
"लाठी"
वैसे तो बात बहुत लम्बी है,पर कही न कही से शुरुआत होनी थी सूबे की राजधानी लखनऊ में विधान सभा गेट न.३ के सामने धरना स्थल हुआ करता था,अक्सर प्रदर्शनकारी विधान सभा मार्ग जाम कर दिया करते थे जाम खुलवाने और राज भवन व् मुख्यमंत्री आवास की और जाने से रोकने के लिए पुलिस द्वारा "लाठी" का इस्तेमाल होता रहा कभी प्रदर्शनकारीयों को ठोकने के अलावा और कोई चारा नहीं था कभी अधिकारी अपनी खिज़ मिटाने के "लाठी" का इस्तेमाल करते रहे, अक्सर राहगीर "लाठीचार्ज" की ज़द में आ जाते, कभी लाठी चलती नहीं पर घंटों विधान सभा मार्ग जाम रहता कई अस्पताल,दफ्तर,स्कूल आने जाने वाले परेशान होते.शासन से फरमान जारी हुआ और धरना स्थल शहीद स्मारक को बना दिया गया.जबकी यह रास्ता है मेडीकल यूनिवर्सिटी,ट्रौमा सेंटर.के अलावा कई अस्पताल इसी रास्ते पर हैं,हाई कोर्ट के साथ कई दफ्तर जाने के लिए सिर्फ येही एक रास्ता है,पर अब यहाँ भी जाम लगने लगा और अक्सर वाटर कैनन का इस्तेमाल होता और "लाठीचार्ज" होता है.जिस मकसद के चलते विधान सभा मार्ग से धरना स्थल हटाया गया था वो पूरा नहीं हुआ.जब आम लोगों को योंही घंटों जाम में फसें रहना है तो विधान सभा मार्ग मार्ग में क्या बुराई थी ? १६ फरवरी को कोंग्रेस के प्रदर्शन के दौरान जो गलतीयां की गयी क्या उन्हें दुबारा नहीं दोहराया नहीं रिपीट किया जाएगा ? अब लोकतंत्र है. तो धरना प्रदर्शन तो होगा ही फिर "लाठी" का सहारा क्यों ? शायद भारत में २ पार्टीयाँ "लाठी" का मज़ा नहीं जानती है,1बहुजन समाज पार्टी 2 भारतीय जनता पार्टी,बहुजन समाज पार्टी की और से वैसे तो ऐसे कोई कार्यक्रम नहीं होते अगर होते हैं उस वक्त वो सत्ता में होती है, कार्यक्रम कामयाब रहे यह जिम्मेदारी प्रशासन की होती है,भारतीय जनता पार्टी के नेता सज्जन कार्यकर्ता सज्जन कुल मिला कर विद्वानों की पार्टी भला कौन यह गुनाह करेगा की भारतीय जनता पार्टी के सज्जन कार्यकर्ता पार्टी दफ्तर से निकल कर हजरतगंज चौराहे पर जाम प्रदर्शन करें और वापस पार्टी दफ्तर फिर कुछ लड़के पुलिस पर पतथर फेंकें मौके पर मौजूद अफ्सारान मिडिया को देखकर कर कहते है लड़के हैं शैतानी कर रहें हैं,भाई ऐसे ही शैतानी सब को करने दें,खैर बात हो रही थी कुछ और बेहतर होता की धरना स्थल शहर से बाहर हो
Wednesday, February 10, 2010
कॉलरा हॉस्पिटल सिर्फ एक नाम भर नहीं है
हुआ तब कुछ नहीं था जब 100 साल पुरानी हज़रतगंज कोतवाली ज़मींदोज़ हो गयी,ना जाने कितने ऐसे संस्मारक हैं,जहाँ कब्जे हैं,अगर एक इमारत और गिर जाती है तो क्या फर्क पडेगा इस शहर की ज़िन्दगी पर.इमारत होती है तोड़ने के लिए,तारे वाली कोठी,कर्नल दिलकुश की कोठी,सिविल सर्जन आफिस,ज़नरल की कोठी,अब इन सब का ज़िर्क किताबों में ही रह गया है,ना जाने कितने कब्रिस्तान,शमशान लील लिए गये,तालाब घोल कर पी गये,नालों और सड़कों पर मकान,दूकान सीना तान कर खड़े हैं "हिम्मत है तो छु कर दिखाओ, वैसे भी बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर की यह छोटी सी बानगी है,गरीब गुरबों को सस्ता इलाज़ वो भी 5 रूपये में इसी शहर में मिलता था,क्योंकी सरकार की तरफ से सब कुछ यहाँ कॉलरा हॉस्पिटल में मुफ्त मिलता था,डेथ टोल ना के बराबर,ना आन्दोलन ना चर्चा,ना रिट हुई,कॉलरा हॉस्पिटल सिर्फ एक नाम भर नहीं है ना जाने कितने लोगों की पनाह गाह रहा,मरीज़ भी खुश तीमारदार भी खुश,शाहजहाँ बाज़ी हो या निगम आंटी इनका नाम ही काफी था यहाँ, दुलारे माली भैया की आवाज़,भंडारी चाचा,राम मिलन,और लामू भैया( रामू ) की आवाजों का अहसास गाना गाते हुए इतवारी,जुगाड़ की तलाश में शमीम भाई,विजय लक्ष्मीजी का हिसाब किताब,और यहाँ पर क्या छोटे बड़े सब कहते थे "संजू भैया " जो आज तक ""संजू भैया " हैं जहाँ में रहता हूँ वहां आज भी लोग "संजोग" को नहीं जानते "संजू भैया " को जानते हैं,( जारी है )
Tuesday, February 9, 2010
एक था अस्पताल
कालरा अस्पताल,कुत्ते वाला अस्पताल,घोड़ा अस्पताल,हैजा अस्पताल, जिसकी जैसी सहूलियत उसने इस अस्पताल का नाम रख लिया,दरअसल इस का नाम था " कॉलरा होस्पीटल" और सरकारी भाषा में इसे " राजकीय संक्रामक रोग चिकित्सालय" के नाम से जाना जाता था,एक दौर था जब 6 महीने कमरुद्दीन बाबू डे ड्यूटी करते थे और शुक्लाजी NIGHT ड्यूटी और बाकी कर्मचारी और अधिकारी टहलने कभी 2 आ जाते,1991 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय पुराने लखनऊ में बारात में लोग फ़ूड POISIONING का शिकार हो गये,माहौल था चुनाव सब दल जुट गये "समाज सेवा" में मरीज़ अस्पताल आने लगे थे पर यहाँ तो ताला पड़ा था,करीब 200 लोग बीमार,आनन् फानन में सब कुछ बदल गया क्लास 3,4 के अलावा सब बदल दिए गये रात होते-2 निजाम भी बदला और सूरत भी और सुबह ऐसा लग रहा था की कोई सोती राजकुमारी जाग गयी हो,JNERATER AMBULANCE के साथ ड्राइवर भी,यह सुधार वादी आन्दोलन लगभग 12 साल चला अब तक इस अस्पताल के आदी मरीज़ भी खुश थे,2003 में यह अस्पताल,K.G.M.U.को सौंपे जाने का फैसला हो गया और धीरे से सब कालेज के पास चला गया अस्पताल से फिर दूर हो गये थे मरीज़ और अब पुरानी इमारत को गिराकर नये भवन की रुपरेखा बन चुकी है,कभी यह पुलिस होस्पीटल था और तब नबी उल्लाह रोड का नाम बुलंद बाग़ रोड हुआ करता था आज़ादी के बाद तब की MUNICIPALITY इसकी देख रेख करती थी,बाद में इसे राज्य को दे दिया गया,आज लगभग यह अस्पताल खाली हो चुका जिनकी कई पुश्तों ने इस अस्पताल में अपना योगदान दिया वे सभी जा चुकें हैं (जारी है )
Friday, February 5, 2010
आपको को तो पुलिस रोकती नहीं है
अगर आप हैलमेट का इस्तेमाल करतें हैं तो यकीनन लखनऊ पुलिस आपको रोकेगी नहीं,बाइक चलाते वक्त मेरा ताज मेरे सर पर होता है,और लोग हमेशा मुझसे सवाल करतें हैं आपको को तो पुलिस रोकती नहीं है फिर आप क्यों हैलमेट लगाते हैं ?मेने जगह २ लोगों को देखा है की हैलमेट बाइक पर पीछे बैठने वाले के हाथ में होता है और पुलिस को देखते ही सर पर,अगर टाइमिंग अचछी नहीं रही तो हैलमेट ना पहने के १० बहाने शुरू.आज "देवा" इस दुनिया में नहीं है,साइकल वाले से टकरा गये हेड इंजरी हो गयी इलाज़ होता रहा,चुपके से आई मौत उन्हें अपने आगोश में ले गयी,विशाल भाई इस लिए बच गये की वो हैलमेट पहने थे,आज लखनऊ देश के हर छोटे बड़े शहर में ना जाने कितने लोग बगैर हैलमेट मौत का शिकार होते हैं, हैलमेट बाइक पर कहीं ना कहीं बंधा होता है,लोगों को ३०० रूपये का जुर्माना अदा करना पड़ता है,इसलिए हैलमेट साथ में होता है वरना कम लोगों को परवाह अपने सर की.
Friday, January 29, 2010
सायरन
30 जनवरी को सुबह 10.59 और 11.00 बजे के बीच जब सारे शहर में सायरन बजने लगे तो इधर उधर मत भागे न परेशान हों पड़ोसी देश ने हमला भी नहीं किया है कुछ कहलें उनकी "बरसी" है ना आप उन्हें अपने हिसाब से जो कहतें हो या जो आपने सीखा हो वो कह लीजीये कहने से कोई किसी को रोकेगा,वो ही जो नोट पर हैं और एक SMS के मुताबिक़ उनका मुह खुला हुआ है "क्योंकी यह नोट एक खास जगह से निकला है आप समझ गये होंगे की में बाबा E कौम की बात कर कर रहा हूँ, LUCKNOW के जिला सूचना कार्यालय से प्रेस नोट जारी हुआ था उसमें यही लिखा था की यह सायरन इस बात की की तरफ इशारा है न परेशान हों और 1 मिनट के लिए रुकना है, मौन वर्त रखना है,जब कांग्रेस जन यह सब नहीं करते तो आर.एस.एस.समाजवादी,सर्वजन वादी और किसी से भी सरोकार न रखने वाले क्यों यह सब करें तो भाई मत डरना सायरन बजे तो बजा करे क्या नाम था उनका........................ BHALA SA नाम था ARE WAHI जो नोट पर हैं,
Monday, January 25, 2010
खता माफ़
बात है इसी बसंत पंचवी की,फिर आई 26 जनवरी की दोस्तों को एसएम्एस किये पर जवाब आये 2-4 ही मुझे याद है 25दिसंबर और 1 जनवरी खूब एसएम्एस आये और अब एसएम्एस आयेंगे 14 फरवरी को वैसे भी 26 जनवरी और 15अगस्त सरकारी पर्व हैं,हमलोग दरअसल बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाने हैं खबर सारे जहां की पर अपने आसपास क्या हो रहा है खबर नहीं शुक्र है बीएसएनएल का 2 दिन तक 26 जनवरी की शुभ कामना सुनने को मिलती रही वैसे बात बात पर एस एम् एस करने वाले शायद कहीं खो गये हैं,अब लगता नामवर और बेनाम शहीदों की बात करना फ़िज़ूल है, अब रोने वालों की फौज है माइकल जैक्सन की मौत पर.अब लता जी भी ऐसे गाने नहीं गाती हैं जिन्हें सुनकर कोई रो सके,लखनऊ में शहीद स्मारक की सीड़ीयों पर लिखा है की जूते चप्पल उतार कर आयें वीं लोग जूते चप्पल पहन कर बैड्तें हैं और पास की झाडीयों में नयन सुख का लुत्फ़ भी लेते हैं,हो सकता है किस्मत आप पर मेहरवान हो "और" भी कुछ देखने को मिल जाए,बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर
अचछा बाकी फिर
अचछा बाकी फिर
Friday, January 22, 2010
14 साल के बाद लगता है महिलाओं को 33% का आरक्षण मिलकर ही रहेगा आज इसे महिला दिवस के अवसर पर लोकसभा में पेश कर दिया जाएगा इसके मौजूदा सरूप को लेकर विरोध हो रहा है,lucknow में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड (वोमेन) अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर का कहना है की 33% के बजाए 50% आरक्षण मिलना चाहिए
"मेरी प्रतिकिर्या बिलकुल ठीक नहीं हैं,क्योंकी में चाहती हूँ 14 साल के बाद यह इतना अहम् बिल आ रहा है, और इसका विरोध भी शुरू हो गया है,शुरू से ही विरोध होता चला आया है इसको हम 33 % नहीं चाहते हम 50% चाहते हैं,क्योंकी 33% होगा तो क्रीमी लेयर वहां सब पहुँच जायगी और कोटे में कोटा की बात हो रही है उसमें फिर लड़ाई झगडा और विवाद शुरू जायेगी और जो मुस्लिम महिलाएं, दलित महिलाएं हैं तो उनको भी पूरा न्याय नहीं मिल पायेगा तो क्रीमी लेयर पहुँच जाएगा
"मेरी प्रतिकिर्या बिलकुल ठीक नहीं हैं,क्योंकी में चाहती हूँ 14 साल के बाद यह इतना अहम् बिल आ रहा है, और इसका विरोध भी शुरू हो गया है,शुरू से ही विरोध होता चला आया है इसको हम 33 % नहीं चाहते हम 50% चाहते हैं,क्योंकी 33% होगा तो क्रीमी लेयर वहां सब पहुँच जायगी और कोटे में कोटा की बात हो रही है उसमें फिर लड़ाई झगडा और विवाद शुरू जायेगी और जो मुस्लिम महिलाएं, दलित महिलाएं हैं तो उनको भी पूरा न्याय नहीं मिल पायेगा तो क्रीमी लेयर पहुँच जाएगा
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